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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 2, Issue 1, Part M (2016)

अपोहवाद का तार्किक और गणितीय आधार

अपोहवाद का तार्किक और गणितीय आधार

Author(s)
डा0 अनन्त कुमार यादव
Abstract
अपोहवाद बौद्धदर्शन के ज्ञानमीमांसीय सिद्धान्तों में अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है। वस्तुतः बौद्ध दर्शन के केन्द्रीय तत्वमीमांसीय सिद्धान्त अनित्यवाद, क्षणिकवाद, अनात्मवाद, दुःखवाद और प्रतीत्यसमुत्पाद को वैचारिक व सुसंगत ज्ञानमीमांसीय आधार देने के लिये अपोहवाद की महती आवश्यकता है। वास्तव में अनित्यवाद व क्षणिकवाद की स्थापना में बौद्धों के समक्ष सबसे बड़ी रूकावट जाति या सामान्य का सिद्धान्त था। यही कारण है कि उन्हें जाति या सामान्य का खण्डन करना एक तार्किक आवश्यकता है, परन्तु जनसामान्य अनेक वस्तुओं में जो एकता का दर्शन करता है, उसका समाधान किये बिना जाति या सामान्य का खण्डन करना भी उचित नही है। परिणामस्वरूप बौद्धो ने एक ऐसे सिद्धान्त का प्रवर्तन किया जो एक तरफ जाति या सामान्य का निरसन करता है और वहीं दूसरी तरफ इससे अनेक वस्तुओं में एकता का विश्लेषण भी कर देता है। इसी को उन्होनें ‘अपोह’ कहा है। प्रस्तुत शोध पत्र में मैं यह दिखाने का प्रयास किया है कि बौद्धों का यह अपोहवाद सिद्धान्त तार्किक ही नही हैं बल्कि इसका ठोस एक गणितीय आधार भी है। सामान्य गणित का द्व्नििषेधात्मक सिद्धान्त (Double Negation Theory) और समुच्चय सिद्धान्त का पूरक सिद्धान्त (Complement Theory) अपोहवाद को ठोस गणितीय आधार प्रदान करता है। यही इस शोध-पत्र की दार्शनिक विशिष्टता है।
Pages: 1015-1017  |  54 Views  28 Downloads
How to cite this article:
डा0 अनन्त कुमार यादव. अपोहवाद का तार्किक और गणितीय आधार. Int J Appl Res 2016;2(1):1015-1017.
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