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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 2, Issue 10, Part K (2016)

साम्प्रदायिकता का भारतीय समाज एवं संस्कृति पर प्रभाव

साम्प्रदायिकता का भारतीय समाज एवं संस्कृति पर प्रभाव

Author(s)
ज्योति कुमारी
Abstract
देश में बार-बार होने वाली सांप्रदायिक हिंसा धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने वाले संवैधानिक मूल्यों पर प्रश्नचिह्न लगता है।सांप्रदायिक हिंसा में पीड़ित परिवारों को इसका सबसे अधिक खामियाजा भुगतना पड़ता है, उन्हें अपना घर, प्रियजनों यहाँ तक कि जीविका के साधनों से भी हाथ धोना पड़ता है। सांप्रदायिकता समाज को विभाजित करती है।सांप्रदायिक हिंसा की स्थिति में अल्पसंख्यक वर्ग को समाज में संदेह की दृष्टि से देखा जाता है और इससे देश की एकता एवं अखंडता के लिये खतरा उत्पन्न होता है। सांप्रदायिकता देश की आंतरिक सुरक्षा के लिये भी चुनौती प्रस्तुत करती है क्योकि सांप्रदायिक हिंसा को भड़काने वाले एवं उससे पीड़ित होने वाले दोनों ही पक्षों में देश के ही नागरिक शामिल होते हैं।भारत की जनता अब इतनी परिपक्व हो चुकी है कि वह शराफत का मुखौटा लगाए इन स्वार्थी, कपटी एवं धूर्त लोगों की आसानी से पहचान कर उनका मुँहतोड़ जवाब दे सके। हमें स्वयं को इतना सुदृढ़ एवं विवेकशील बनाना होगा कि उक्ति-अनुचित, नैतिक-अनैतिक, तार्किक-अतार्किक आदि के बीच अन्तर की स्पष्ट पहचान की जा सके, जिससे राष्ट्रीय एकता एवं मानवीयता की गरिमा बरकरार रहे। सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिये मजबूत कानून की आवश्यकता होती है।अतः सांप्रदायिक हिंसा (रोकथाम, नियंत्रण और पीड़ितों का पुनर्वास) विधेयक, 2005 को मजबूती के साथ लागू करने की आवश्यकता है।
Pages: 757-761  |  389 Views  97 Downloads
How to cite this article:
ज्योति कुमारी. साम्प्रदायिकता का भारतीय समाज एवं संस्कृति पर प्रभाव. Int J Appl Res 2016;2(10):757-761.
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