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Peer Reviewed Journal

Vol. 2, Issue 11, Part D (2016)

मुंशी प्रेमचन्द्र का हिन्दी साहित्य में योगदानः एक समीक्षा

मुंशी प्रेमचन्द्र का हिन्दी साहित्य में योगदानः एक समीक्षा

Author(s)
सुरेन्द्र कुमार गुप्ता
Abstract
हिन्दी उपन्यास की परम्परा इतनी गहरी और विभिन्न रंगों से भरपूर है की इस छोटे से लेख में इस विषय को न्याय देना असंभव ही है। प्रेमचन्द ने हिन्दी साहित्य को निष्चित दिषा दी है। प्रेमचन्द आज भी उतने ही प्रासंगिक है जिनते अपने दौर में रहे हैं, बल्कि किसान जीवन की उनकी पकड और समझ को देखते हुए उनकी प्रासंगिकता और अधिक बढ़ जाती है। किसान जीवन के यथार्थवादी चित्रण में प्रेमचन्द हिन्दी साहित्य में अनूठे और लाजवाब रचनाकार रहे हैं। प्रेमचन्द का कथा साहित्य जितना समकालीन परिस्थितियों पर खरा उतरता है, उतना ही बहुत हद तक आज भी दिखाई देता है। उनकी रचनाओं में गरीब श्रमिक, किसान और स्त्री जीवन का सषक्त चित्रण उनकी दर्जनों कहानियों और उपन्यासों में हुआ है, ‘सद्गति’, ‘कफन’, ‘पूस की रात’ और ‘गोदान’ में मिलता है। ‘रंगभूमि’, ‘प्रेमाश्रम’ और ‘गोदान’ के किसान आज भी गाँवों में देखे जा सकते हैं साहित्य के क्षेत्र में प्रेमचन्द का योगदान अतुलनीय है। उन्होंने कहानी और उपन्यास के माध्यम से लोगों को साहित्य से जोड़ने का काम किया, उनके द्वारा लिखे गए उपन्यास और कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं।
Pages: 269-274  |  496 Views  149 Downloads


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How to cite this article:
सुरेन्द्र कुमार गुप्ता. मुंशी प्रेमचन्द्र का हिन्दी साहित्य में योगदानः एक समीक्षा. Int J Appl Res 2016;2(11):269-274. DOI: 10.22271/allresearch.2016.v2.i11d.10863
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