Vol. 2, Issue 12, Part L (2016)
हिनà¥à¤¦à¥€ साहितà¥à¤¯ पर बौदà¥à¤§-धरà¥à¤®-दरà¥à¤¶à¤¨ का पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ
हिनà¥à¤¦à¥€ साहितà¥à¤¯ पर बौदà¥à¤§-धरà¥à¤®-दरà¥à¤¶à¤¨ का पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ
Author(s)
डाॅ॰ राम बालक राय
Abstract
à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ वाङà¥à¤®à¤¯ में उपजीवà¥à¤¯ कावà¥à¤¯ के रूप में कà¥à¤°à¤®à¤¶à¤ƒ राम, कृषà¥à¤£ और बà¥à¤¦à¥à¤§ इन तीन महापà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ के जीवन-चरितà¥à¤° à¤à¤µà¤‚ इनसे समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¤¿à¤¤ पातà¥à¤°à¥‹à¤‚ को आधार बनाकर लिखे गये गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ हैं। राम और कृषà¥à¤£ की तà¥à¤²à¤¨à¤¾ में à¤à¤—वानॠबà¥à¤¦à¥à¤§ à¤à¤µà¤‚ उनसे समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¤¿à¤¤ पातà¥à¤°à¥‹à¤‚ या सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ को आधार बनाकर लिखे गये गà¥à¤°à¤‚थ अपेकà¥à¤·à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤ कम हैं, किनà¥à¤¤à¥ वे अनà¥à¤ªà¥‡à¤•à¥à¤·à¤£à¥€à¤¯ नहीं है। संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤-साहितà¥à¤¯ में अपà¤à¤‚à¥à¤°à¤¶ -अपà¤à¤‚श-साहितà¥à¤¯ में विमल सूरि à¤à¤µà¤‚ सà¥à¤µà¤¯à¤‚à¤à¥‚ की रचनाà¤à¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ हैं। इसके बावजूद यदि à¤à¤¾à¤°à¤¤ को आधà¥à¤¨à¤¿à¤• à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं के साहितà¥à¤¯ में बà¥à¤¦à¥à¤§ या इनसे समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¤¿à¤¤ पातà¥à¤°à¥‹à¤‚ का आधार बनाकर रचनाà¤à¤ नहीं की गईं, तो इसका कारण बà¥à¤¦à¥à¤§ à¤à¤µà¤‚ उनसे समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¤¿à¤¤ पातà¥à¤°à¥‹à¤‚ की चारितà¥à¤°à¤¿à¤• उदातà¥à¤¤à¤¤à¤¾ का अà¤à¤¾à¤µ नहीं, अपितॠबौदà¥à¤§-धरà¥à¤® के सामà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤• गà¥à¤°à¤‚थों में किये गये मनमाने हेर-फेर हैं। à¤à¤—वानॠबà¥à¤¦à¥à¤§ ने अपने संचरण-कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में जब और जिस à¤à¤¾à¤·à¤¾ में उपदेश किया, उसका बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¾à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤• सà¥à¤µà¤°à¥‚प उपलबà¥à¤§ नहीं होता। à¤à¤—वानॠबà¥à¤¦à¥à¤§ के महापà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤£ के कà¥à¤› सौ वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ बाद संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤, पाली, पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤, अपà¤à¥à¤°à¤‚श इन à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं के जानकार इनके पंडित शिषà¥à¤¯ à¤à¤•à¤¤à¥à¤° हà¥à¤ और इन लोगों ने à¤à¤—वानॠबà¥à¤¦à¥à¤§ के उपदेशों को अपनी-अपनी à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया। à¤à¤—वानॠबà¥à¤¦à¥à¤§ के उपदेशों को लिपिबदà¥à¤§ à¤à¤µà¤‚ गà¥à¤°à¤‚थबदà¥à¤§ करने में समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿà¥ अशोक का योगदान सरà¥à¤µà¥‹à¤ªà¤°à¤¿ माना जाता है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि जो समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿà¥ अशोक पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठमें अपनी पà¥à¤°à¤¬à¤² रकà¥à¤¤-पिपासा और सामà¥à¤°à¤¾à¤œà¥à¤¯-विसà¥à¤¤à¤¾à¤° की अदमà¥à¤¯ लालसा के कारण अपने वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ से ‘चंडाशोक’ कहलाता था, वही समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿà¥ अशोक परवरà¥à¤¤à¥€ काल में à¤à¤—वानॠबà¥à¤¦à¥à¤§ का शिषà¥à¤¯ बनकर और शानà¥à¤¤à¤¿ का तथाकथित उपासक बनकर ‘देवानांपà¥à¤°à¤¿à¤¯ पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¦à¤°à¥à¤¶à¥€ अशोक’ की उपाधि से अलंकृत हà¥à¤†à¥¤ à¤à¤¾à¤°à¤¤ के विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ à¤à¤¾à¤—ों में ही नहीं, à¤à¤¾à¤°à¤¤ से बाहर शà¥à¤°à¥€à¤²à¤‚का, वरà¥à¤®à¤¾, सà¥à¤¯à¤¾à¤®, मलाया, चीन, जापान-जैसे समीपवरà¥à¤¤à¥€ अनà¥à¤¯ देशों मंे à¤à¥€ इनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने धरà¥à¤®à¤¦à¥‚त à¤à¥‡à¤œà¥‡ à¤à¤µà¤‚ à¤à¤—वानॠबà¥à¤¦à¥à¤§ के उपदेशों का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°-पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤° कराया। [1]
How to cite this article:
डाॅ॰ राम बालक राय. हिनà¥à¤¦à¥€ साहितà¥à¤¯ पर बौदà¥à¤§-धरà¥à¤®-दरà¥à¤¶à¤¨ का पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ. Int J Appl Res 2016;2(12):825-827.