Vol. 2, Issue 9, Part A (2016)
महाकवि कालिदास की मानव निरà¥à¤®à¤¿à¤¤à¤¿
महाकवि कालिदास की मानव निरà¥à¤®à¤¿à¤¤à¤¿
Author(s)
डॉ0 अशोक कà¥à¤®à¤¾à¤° दà¥à¤¬à¥‡
Abstractसाहितà¥à¤¯ जगतॠमें कवि सामाजिकता से समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¤¿à¤¤ विषयों को सदैव आतà¥à¤®à¤¸à¤¾à¤¤à¥ कर अपने कावà¥à¤¯ में पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¿à¤¤ करता है। उसका काल उसकी कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ à¤à¤µà¤‚ रंजना-शकà¥à¤¤à¤¿ का समनà¥à¤µà¤¿à¤¤ रूप होता है। कालिदास की कृतियों में समाज सामाजिक घात-पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤˜à¤¾à¤¤à¥‹à¤‚ से पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ अवशà¥à¤¯ हà¥à¤¯à¥‡ थे। कालिदास के समय में दो पà¥à¤°à¤®à¥à¤– धरà¥à¤®à¥‹à¤‚ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ à¤à¤µà¤‚ शà¥à¤°à¤®à¤£ का अनà¥à¤¤à¤° विरोध बहà¥à¤¤ चल रहा था। दूसरे को नीचा दिखाने की पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¤¿ मानवता का गला घोंटने के लिठउदà¥à¤¯à¤¤ था, परनà¥à¤¤à¥ कालिदास ने उतà¥à¤¤à¤° वैदिक संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ को अपनाकर उकà¥à¤¤ दोनों धरà¥à¤®à¥‹à¤‚ की रीतियों की निनà¥à¤¦à¤¾ की तथा तà¥à¤¯à¤¾à¤— à¤à¤µà¤‚ तपसà¥à¤¯à¤¾ मूलक संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ को परिनिषà¥à¤ ित किया।
कालिदास ने समाज के à¤à¤• à¤à¤¸à¥‡ उदाŸà¤¾ रूप की कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ की है, जिसमें किसी à¤à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° का वैषमà¥à¤¯ न होकर परसà¥à¤ªà¤° समवेत की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ मà¥à¤–रित हो रही है। उनके समय में बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ धरà¥à¤® के पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿ वशिषà¥à¤ सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के आडमà¥à¤¬à¤°à¥‹à¤‚ से दूर होकर जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की शिकà¥à¤·à¤¾ जताये बैठे हैं। वरà¥à¤£ à¤à¤µà¤‚ आशà¥à¤°à¤® à¤à¤•-दूसरे के पूरक होकर सबकी उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ के साधक थे। à¤à¤¸à¥€ थी कालिदास की मानव निरà¥à¤®à¤¿à¤¤à¤¿à¥¤
सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¥à¤¯à¥ˆ दणà¥à¤¡à¤¯à¤¤à¥‹ दणà¥à¤¡à¤¯à¤¾à¤¨ परिणेतà¥à¤ƒ पà¥à¤°à¤¸à¥‚तये।
अपà¥à¤¯à¤°à¥à¤¥à¤•à¤¾à¤®à¥Œ तसà¥à¤¯à¤¾à¤½à¤½à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤‚ धरà¥à¤® à¤à¤µà¤‚ मनीषिणः।।
How to cite this article:
डॉ0 अशोक कà¥à¤®à¤¾à¤° दà¥à¤¬à¥‡. महाकवि कालिदास की मानव निरà¥à¤®à¤¿à¤¤à¤¿. Int J Appl Res 2016;2(9):57-62.