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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 3, Issue 1, Part L (2017)

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था और चुनाव

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था और चुनाव

Author(s)
डाॅ. जितेन्द्र प्रसाद
Abstract
भारतीय लोकतन्त्रीय प्रणाली का प्रादुर्भाव समाज के आधुनिकतावादी प्रभाग में हुआ और यहीं से विकसित होकर जनसाधारण में विस्तृत हुआ। भारतीय समाज की जडें इन पुरानी सभ्यता में है, जिसमें विविध तत्वों, वर्गों एवं जातियों का समावेश हुआ है तथा इसके आचार-विचार और मूल्यों की अपनी परम्परा है। दूसरी ओर संसदीय शासन तथा सत्तारूढ़ और विरोधी दलों का द्वन्द्व आधुनिक युग की चीजें हैं। भारतीय सामाजिक व्यवस्था प्राचीनकाल में वर्ण व्यवस्था पर आधारित रही है। वर्ण के साथ सामाजिक प्रतिष्ठा और पद का सम्बन्ध है, इसलिए छोटी समझी जाने वाली जातियां ऊपर के वर्ण में प्रवेश को उत्सुक रहती है। दूसरा वर्ण सार्व-देशिक श्रेणी या ढांचा है जिसमें देशभर की हजारों जातियां शामिल होती हैं। प्रतिष्ठा के मामले में ऊपर के वर्णों में भी प्रतिस्पर्धा रहती हें उदाहरण के लिए क्षत्रिय वर्ण की ब्राह्मण वर्ण से पुरानी स्पर्धा रही है। इस प्रकार देश की सामाजिक व्यवस्था में वर्ण विभिन्न जातियों को जोड़ने काया एक साथ लाने का काम करता है और राजनैतिक, औद्योगिकया चुनाव सम्बन्धी समाज में जो स्पर्धा संघर्ष उत्पन्न होते हैं, उनको सम्भालने का भी काम करता है। एक वर्ण में हजारों जातियां, उपजातियां हो ती हैं जो सोपान क्रम में एक-दूसरे से ऊँची-नीची होती हैं। वे जातियां चुनाव के समय संगठित होकर अपने समाज के प्रत्याशियों को चुनाव में विजय दिलाने का प्रयास करती है। स्वतंत्रता से पूर्व ब्राह्मण और कायस्थ जातियां जो शिक्षा, कानून, अंग्रेजी भाषा की ज्ञाता थी, पूरे भारतीय समाज का अंगे्रजों के विरूद्ध नेतृत्व प्रदान किया। लेकिन स्वतन्त्रता के बाद सभी वर्णों में नेताओं की उत्पत्ति हुई, जो अपने-अपने वर्ण का नेतृत्व करने लगे। ये जातियां वर्ण के माध्यम से सौदेबाजी करती है। जातीय संगठनों ने भारतीय राजनीति में उसी प्रकार भाग लिया है, जिस प्रकार अन्य देशों में विभिन्न हितों एवं वर्गों के संगठनों ने। स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व राजनीतिक मामलों पर वर्ण-व्यवस्था के ऊपर वाले वर्ण यथा-ब्राह्मण और क्षत्रिय तथा वैश्य वर्गों में ऊपर की जातियों का वर्चस्व था तथा मुसलमानों में भी उच्च वर्ग वालों का वर्चस्व था। लेकिन स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद स्थिति में बदलाव आया। संविधान ने अपने सभी नागरिकों को सभी क्षेत्रों में समान मौलिक अधिकार प्रदान किये हैं।
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How to cite this article:
डाॅ. जितेन्द्र प्रसाद. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था और चुनाव. Int J Appl Res 2017;3(1):906-909.
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