Vol. 3, Issue 12, Part D (2017)
अमोल बटरोही के काव्य में सांसारिक जीवन के विविध चित्र का अध्ययन
अमोल बटरोही के काव्य में सांसारिक जीवन के विविध चित्र का अध्ययन
Author(s)
अर्चना द्विवेदी
Abstract
प्रस्तुत शोध पत्र अमोल बटरोही के काव्य में सांसारिक जीवन के विविध चित्र का अध्ययन पर आधारित है। समाज, राजनीति, अर्थ, संस्कृति एवं चरित्र यही आज के जीवन के पंचतत्व हैं। इन्हीं से वर्तमान जीवन पद्धति निर्मित एवं गतिमान है। और जब इन्हीं में धुन लग जाय तो जीवन ही क्या, सम्पूर्ण राष्ट्र जर्जर हो जायेगा। वह जीता तो रहेगा किन्तु भीतर से खोखला होकर। वर्तमान युग में सामाजिक विद्रूपता के अनेक यथार्थ दृश्य प्रस्तुत करने वाले रचनाकारों में रामदास पयासी, सैफू, शंभू, गुलाम गौस, डाॅ. भगवती प्रसाद शुक्ल, रामलखन शर्मा ‘निर्मल’, शिवशंकर मिश्र ‘सरस’ तथा आर.जी. विकल आदि प्रमुख हैं। बेमेल विवाह, बाल विवाह, दहेज प्रथा, विधवा विवाह, छुआछूत, वर्गभेद, अशिक्षा आदि प्रमुख रूप से सामाजिक विद्रूपता के अन्तर्गत आते हैं। मानव जीवन संकीर्णताओं एवं विद्रूपताओं के कारण अदना हो गया है, साथ ही उसका परिवेश भी संकीर्ण हो गया है। ‘अमोल बटरोही’ 1967 से प्रारम्भ कर 1995 तक में निरन्तर अपने काव्य एवं शिल्प में विकास करते चले गये हैं। ठेठ बघेली शब्दों एवं विशुद्ध ग्रामीण परिवेश में नूतन बिम्ब प्रतीकों की स्थापना करते हुए उन्होंने बघेली-माटी की सोंधी महक विश्व में बिखेरने का अभिनव प्रयास किया है। कथ्य एवं शिल्प में वैविध्य की दृष्टि से उनका वाड.मय विराट है। बोधगम्य होने के कारण उनकी कविताएँ बघेलखण्ड-अंचल में अत्यन्त लोकप्रिय हैं। उनके काव्य की थाती राष्ट्र द्वारा संरक्षणीय एवं संवहनीय है।
How to cite this article:
अर्चना द्विवेदी. अमोल बटरोही के काव्य में सांसारिक जीवन के विविध चित्र का अध्ययन. Int J Appl Res 2017;3(12):218-221.