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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 3, Issue 12, Part G (2017)

बघेलखण्ड के सेंगरों का सामाजिक-धर्मिक गतिविधियाँ

बघेलखण्ड के सेंगरों का सामाजिक-धर्मिक गतिविधियाँ

Author(s)
डाॅ. सुमन तिवारी
Abstract
संस्कृति व्यक्तिचेतना की सम्यक क्रियाशीलता का सामाजिक रूप है। व्यक्ति चेतना ही समाज द्वारा स्वीकृत होकर समाज चेतना बन जाती है और लोक संस्कृति तथा लोककला को रूप देती है। बघेलखण्ड लोक जीवन और लोक संस्कृति के आधिस्ठान के अन्तर्गत ही सेंगरान की आंचलिक कला और संस्कृति आती है। यहाँ की लोकवाचिक (लोक कला) परम्परा के समस्त पक्षो आस्थाओ, विश्वासो, रीति रिवाजो, पर्वो, उत्सवो, दैनन्दिन और नैमितक अनुष्ठानो खान-पान, रहन-सहन, हास-परिहास, गीत-संगीत मानवीय संवेदनाओं के कारण संरक्षित है। संस्कृति इस राज्य के इतिहास जानने में सहायक तत्व रही। धर्मदर्शन हमारी संस्कृत का एक महत्वपूर्ण पहलू है, जो प्राचीन काल से हमारी सभ्यता से जुडा हैं। सेंगर राज्य एक हिन्दू शासित क्षेत्र हैं जहाॅ हमेशा ही हिन्दू राजाओ का अधिपव्य था अतः इस राज्य में अन्य धर्मावलम्बी शासको को सेंगरो ने प्रवेश नही करने दिया “कहा जाता हंै की एक अंग्रेज ने प्रवेश किये ये कोई चढ़ाई नही थी और न इससे पहले कभी अंग्रेज नईगढ़ी में प्रवेश किये थे बल्की रीवा वाले उनको नईगढ़ी दिखाने लाए थे। जब छत्रधारी सिंह को यहां अंग्रेजो के प्रवेश की सूचना मिली इससे नाराज होकर वह प्रायग में थे वहां से बनारस चले गये। उन्होने कहा -’हम नईगढ़ी न जायेगे न ही वहाॅ का पानी पियेगे हमारी गढी को बेधर्मी कचर दिये है’ जब उन्हे समझा-बुझा कर बुलाया गया वे धेनमहा (कोर्ट के) पास उपवास किये उनके साथ उनकी प्राजा भी उपवास में वैठी रही और तीन रोज तक पानी नही पिया बहुत समझाने बुझाने पर गढ़ी को धुलवाकर गंगा जल से पवित्र किया गया तब गढ़ी परिसर में बने राम जानकी मंदिर में छत्रधारी ने उपवास तोड़ा।
Pages: 418-421  |  949 Views  127 Downloads
How to cite this article:
डाॅ. सुमन तिवारी. बघेलखण्ड के सेंगरों का सामाजिक-धर्मिक गतिविधियाँ. Int J Appl Res 2017;3(12):418-421.
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