Vol. 3, Issue 3, Part D (2017)
रेणॠकी कहानियों में सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ वेदना की यथारà¥à¤¥ दरà¥à¤¶à¤¨
रेणॠकी कहानियों में सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ वेदना की यथारà¥à¤¥ दरà¥à¤¶à¤¨
Author(s)
सà¥à¤®à¤¿à¤¤à¤¾ कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€
Abstract
रेणॠने गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£-जीवन की वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤•à¤¤à¤¾ को परत-दर-परत खोल कर पाठक के सामने रखा है। यथारà¥à¤¥ को वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ करने में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने समाज में घटित होनेवाली घटनाओं को बिंब के रूप में दिखाने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया है। रेणॠका मन ठीक इस संवदिया की तरह है। वह संवाद को ठीक-ठीक कह नहीं पाता है। वह अपने गाà¤à¤µ की दà¥à¤–दायी गाथा को कहते हà¥à¤ रोता है, बिलखता है।
How to cite this article:
सà¥à¤®à¤¿à¤¤à¤¾ कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€. रेणॠकी कहानियों में सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ वेदना की यथारà¥à¤¥ दरà¥à¤¶à¤¨. Int J Appl Res 2017;3(3):247-248.