Vol. 3, Issue 6, Part L (2017)
जैनेन्द्र व्याकरण में समास प्रकरण : एक अध्ययन
जैनेन्द्र व्याकरण में समास प्रकरण : एक अध्ययन
Author(s)
महेश चन्द्र शर्मा
Abstractजैनेन्द्र व्याकरण पाणिनीय उत्तरकालीन शब्दानुशासन है जो आचार्य देवनन्दि द्वारा छठी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में लिखा गया है। यह प्रसिद्ध जैनाचार्य है इन्हें पूज्यपाद नाम से भी अभिहित किया जाता है। यह जैन व्याकरण परम्परा का सबसे प्राचीन व्याकरण है। प्रस्तुत शोधपत्र में जैनेन्द्र व्याकरण के समास-प्रकरण समीक्षा की गई है।
जैनेन्द्र व्याकरण में पाणिनीय समास-प्रकरण से कुछ समानता तथा कुछ असानताएँ दिखाई देती हैं। कहीं सूत्र गत भेद, कहीं उदाहरणों में भेद तथा किन्हीं स्थलों में प्रक्रिया सम्बन्धी भेद भी दिखाई देते हैं, जिनका विववेचन प्रस्तुत है-
पाणिनीय व्याकरण में सामास भेद जैनेन्द्र व्याकरण में समास भेद समास के लिये - सः ।।१।३।२ सूत्र का प्रयोग । अव्ययीभाव -अव्ययीभावः ।।२।१।५ अव्ययीभाव के लिये - हः ।। १।३।४ सूत्र का प्रयोग । तत्पुरुष - तत्पुरुषः ।।२।१।२२ तत्पुरुष के लिये - षम् ।।१।३।१९ सूत्र का प्रयोग । कर्मधारय- तत्पुरुषः समानाधिकरणः कर्मधारयः ।।१।२। ४२ कर्मधारय के लिये - यः - १.३.४७ सूत्र का प्रयोग । द्विगु -संख्यापूर्वो द्विगुः।। २।१।५२ द्विगु के लिये - रः - संख्यादी रश्च १.३.४७ सूत्र का प्रयोग । बहुव्रीहि -अनेकमन्यपदार्थे।।२।२।२४ बहुव्रीहि के लिये - बम् - अन्यपदार्थेऽनेकमं बम्-१.३.८६ सूत्र का प्रयोग ।
How to cite this article:
महेश चन्द्र शर्मा. जैनेन्द्र व्याकरण में समास प्रकरण : एक अध्ययन. Int J Appl Res 2017;3(6):814-819.