Vol. 3, Issue 6, Part L (2017)
मैत्रेयी पुष्पा के साहित्य में नारी चेतना
मैत्रेयी पुष्पा के साहित्य में नारी चेतना
Author(s)
निर्मला
Abstract
हर युग में नारी की स्थिति परिवर्तित हुई है। कभी समाज ने उसकी प्रशंसा की है तो कभी उसे दासी समझकर उसकी अवहेलना की है। मनुस्मृति में लिखा है - ‘‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवतः। यत्रे तास्तु न पूज्यंते सर्वास्तत्राफलः क्रिया।’’ अर्थात जहां स्त्री की पूजा की जाती है, वहाँ देवता वास करते हैं। मैत्रेयी पुष्पा के अनुसार स्त्री मुक्ति व स्वतंत्रता का अर्थ स्वच्छंद आचरण या देह प्रदर्शन नहीं बल्कि समाज में पुरुषों के समकक्ष स्त्रियों को प्राप्त अधिकारों का सही उपयोग है। भारत में नारी जागरण या नारी स्वतंत्रता संबंधी जैसे आंदोलन शुरू हुए, वैसे नारी में ‘‘स्व’’ की भावना जागृत होने लगी है। अब वह अपनी अस्मिता को पहचानने लगी है। मैत्रेयी पुष्पा नारी को शोषण से मुक्त कराने और उसकी स्वतंत्र अस्मिता को स्थापित करने का प्रयास करती है। उन्होंने अपनी रचनाओं में ऐसी स्त्री की छवि को अंकित किया है जो स्वयं संघर्ष करती है। अपनी लड़ाई खुद लड़ती है और अधिकारों को स्वयं प्राप्त करती है। मैत्रेयी पुष्पा के कथा साहित्य में स्त्री चेतना के विविध आयाम दिखाई देते है। स्त्री जीवन से जुड़ी समस्याएँ, संघर्ष, स्वतंत्रता, अधिकार चेतना, स्वालंबन, अस्तित्व और अस्मिता आदि स्त्री चेतना के कई तथ्य सामने आते है। मैत्रेयी पुष्पा की रचनाएँ अपनी अनुभूति पर आधारित है। इसलिए उनकी रचनाओं में जीवन की वास्तविकता का चित्रण हुआ है। घटनाओं की सत्यता और पात्रों की सजीवता यह उनके साहित्य की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। मैत्रेयी पुष्पा के साहित्य में समाज की नारी समस्या, आर्थिक, धार्मिक, राजनैतिक समस्याओं पर प्रकाश डाला है।
How to cite this article:
निर्मला. मैत्रेयी पुष्पा के साहित्य में नारी चेतना. Int J Appl Res 2017;3(6):848-851.