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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 3, Issue 6, Part Q (2017)

बौद्ध-दर्शन में हीनयान और महायन का महत्त्व

बौद्ध-दर्शन में हीनयान और महायन का महत्त्व

Author(s)
डाॅ॰ राम बालक राय
Abstract
इतिहास की पृष्टभूमि पर धार्मिक और दार्शनिक दृष्टि से बौद्ध धर्म दो सम्प्रदायों में विभक्त हो गया- हीनयान और महायान। हीनयान की उपलब्धि ‘अर्हत्’ पद की प्राप्ति है अर्थात् अष्टाङ्गिक मार्ग की साधना और घोर तप के माध्यम से बुद्धत्व की प्राप्ति की सम्भावना होती है, जो बहुत कम को उपलब्ध होता है। महायान का आदर्श बुद्धत्व अर्थात् बोधिसत्व की उपलब्धि है। श्रीलंका, वर्मा, थाईलैंड एवं चीन-प्रभृति देशों में अधिक प्रचलित एवं प्रचरित हीनयान है। जापान, एवं पूर्वोत्तर क्षेत्र में महायान प्रचलित है। यान शब्द का अर्थ है- सवारी, घोड़गाड़ी, गमनागमन या अभियान। इस प्रकार महायान का अर्थ हुआ- वह बड़ी सवारी, जिस पर सवार होकर सब प्राणी निर्वाणतट तक पहुँच सकते है। इनकी अपेक्षा कम लोगों को निर्वाणतट तक पहुँचाने वाला हीनयान है।
Pages: 1219-1221  |  281 Views  3 Downloads
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How to cite this article:
डाॅ॰ राम बालक राय. बौद्ध-दर्शन में हीनयान और महायन का महत्त्व. Int J Appl Res 2017;3(6):1219-1221.
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