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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Peer Reviewed Journal

Vol. 3, Issue 9, Part I (2017)

खुसरो की परम्परा और नजी़र अकबराबादी

खुसरो की परम्परा और नजी़र अकबराबादी

Author(s)
डॉ० विजय कुमार
Abstract
भारत की सामासिक संस्कृति के लिए धार्मिक कट्टरता एक चुनौती रही है। मुसलमानी राज्य स्थापित होने के उपरान्त मुस्लिम बादशाहों का हिन्दुओं के प्रति रवैया क्रूरतापूर्ण रहा। हिन्दू और उनके पूजास्‍थल सदा उसके निशाने पर रहे। परन्तु उन्हीं आक्रमणकारियों के साथ आये सूफी संतों ने इस्लाम की एक नई छवि प्रस्तुत की। उनकी विचारधारा ईरानी तसव्‍वुफ से प्रभावित थी और उनका दृष्टिकोण मानवतावादी था। अपने धर्म के आचरण को अपनाते हुए वे दूसरे धर्म के अनुयायिओं के साथ प्रेम का संबंध रखते थे। वे ‘प्रेम का पीर’ जगाकर कर सभी को उस परम ईश्वर की ओर ले जाना चाहते। अमीर खुसरों भी एक सूफी संत और कवि थे जो हजरत निजामुद्दीन औलिया के शिष्य थे। अमीर खुसरो फारसी के विद्वान थे और ईरानी रहस्यवाद में आस्था रखते थे परन्तु भारत भूमि, भारतवासी, भारत की भाषा से उन्हें अगाध प्रेम था। धार्मिक कट्टरता के दौर में अमीर खुसरो ने अपनी कविता के माध्यम से हिन्दुओं के प्रति सौहार्द का पैगाम भेजा और हिन्‍दुओं में इस्लाम के प्रति धारणा बदली। अमीर के इस प्रयास ने हिन्दी–उर्दू के परवर्ती कवियों को दूर–दूर तक प्रभावित किया। हिन्दी में कबीर आदि संत कवियों, सूरदास आदि भक्त कवियों, जायसी आदि प्रेममार्गी कवियों ने अमीर खुसरो की परम्परा को आगे बढ़ाया तो उर्दू में आगे चलकर कई महत्त्वपूर्ण कवि हुए जिन्होंने इस परम्‍परा को मुरझााने से बचाया। इन्हीं कवियों में एक थे – नज़ीर अकबराबादी। वे आम जनता के कवि थे। उनका मेल–जोल साधारण हिन्दू जनता से था। इसी का परिणाम था कि वे हिन्दुओं के रीति–रिवाज संस्कार, पर्व–त्याहारों को नजदीक से देखा। उन्होंने गंगा–जमुनी तहजीब को बल प्रदान करने के लिए मुसलमानों के साथ–साथ हिन्दुओं के लिए भी कविताऍं लिखी। हिन्दुओं पर उनकी कविता का साकारात्मक प्रभाव पड़ा, वे मुसलमान भाईयों के कुछ और करीब आये, साम्प्रदायिक सौहार्द मजबूत हुआ। आज संकट की घड़ी में नज़ीर अकबराबादी हमारे लिए बहुत प्रासंगिक हो गये है, क्‍योंकि राष्‍ट्रीय अन्‍तर–राष्‍ट्रीय स्‍तर पर चल रही धर्म की राजनीति भाईचारा पर चोट कर रही है।
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How to cite this article:
डॉ० विजय कुमार. खुसरो की परम्परा और नजी़र अकबराबादी. Int J Appl Res 2017;3(9):684-687.
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