Vol. 4, Issue 1, Part F (2018)
तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸à¤œà¥€ कृत ‘दोहावली’ का कलातà¥à¤®à¤• वैषिषà¥à¤Ÿà¤¯
तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸à¤œà¥€ कृत ‘दोहावली’ का कलातà¥à¤®à¤• वैषिषà¥à¤Ÿà¤¯
Author(s)
संगीता कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ à¤à¤¾
Abstractतà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸ मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¤à¤ƒ à¤à¤• à¤à¤•à¥à¤¤ थे इसलिठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने न तो पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· रूप से कावà¥à¤¯ का शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ विवेचन-विषà¥à¤²à¥‡à¤·à¤£ किया और न कवि के रूप को अपनी रचनाओं में पà¥à¤°à¤®à¥à¤–ता दी। ‘मानस’ में तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने घोषणा ही कर दी है-‘‘कवित विवेक à¤à¤• नहि मोरे’’ तथा ‘‘कवि न होऊठनहि चातà¥à¤° कहाबहà¥à¤’’ यहाठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ कर दिया है कि ‘कावà¥à¤¯-विवेक’ और ‘कावà¥à¤¯-चातà¥à¤°à¥€ से उनकी कविता à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ है। राम की यषोगाथा गाते हà¥à¤ तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸à¤œà¥€ ने पà¥à¤°à¤¸à¤‚गवष कावà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ का निराकरण किया है। गोसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤œà¥€ ने कावà¥à¤¯ में à¤à¤¾à¤µà¤¾à¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ के समान ही कला-पकà¥à¤· को à¤à¥€ महतà¥à¤µ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ किया है। पर यह सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ है कि उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कावà¥à¤¯-रचना में कला-पकà¥à¤· को जानबूठकर महतà¥à¤µ नहीं दिया, अपितॠयह अनायास ही निःशà¥à¤°à¤¿à¤¤ होता चला गया।
तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸ à¤à¤• समनà¥à¤µà¤¯à¤µà¤¾à¤¦à¥€ कवि थे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने जिस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ धरà¥à¤®, दरà¥à¤·à¤¨ और समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤• मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में समनà¥à¤µà¤¯ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ किया, उसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कावà¥à¤¯ में à¤à¤¾à¤µ-पकà¥à¤· à¤à¤µà¤‚ कला-पकà¥à¤· के सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° समनà¥à¤µà¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ कावà¥à¤¯-रचना को शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ आदरà¥à¤· पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया।
किसी à¤à¥€ रचना के अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿-पकà¥à¤· से संबंधित जिन विषेषताओं की चरà¥à¤šà¤¾ की जाती है, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ समगà¥à¤°à¤°à¥‚प में अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿-पकà¥à¤· या षिलà¥à¤ª-पकà¥à¤· या कला-पकà¥à¤· की संजà¥à¤žà¤¾ दी जाती है। कला-पकà¥à¤· के अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤—तॠमà¥à¤–à¥à¤¯à¤¤à¤ƒ वरà¥à¤£à¤¨ शैली, अलंकार, गà¥à¤£, दोष छनà¥à¤¦ à¤à¤¾à¤·à¤¾ आदि पर विचार किया जाता है। डाॅ0 उदयमानॠसिंह कहते है-‘‘पà¥à¤°à¤¤à¤¿ पादà¥à¤¯ बसà¥à¤¤à¥ की आननà¥à¤¦ विदà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¿à¤¨à¥€-विदà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¨à¥€ अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤‚जना-षैली कला है। विà¤à¤¾à¤µ आदि का उचित संयोजन, वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¤ वसà¥à¤¤à¥-विनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ धà¥à¤µà¤¨à¤¿-वकà¥à¤°à¥‹à¤¨à¥à¤¤à¤¿, गà¥à¤£-वृति, अलंकार, चितà¥à¤°à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤•à¤¤à¤¾ उपरà¥à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ छनà¥à¤¦ आदि कला-पकà¥à¤· की विषेषताà¤à¤ हैं।’’
How to cite this article:
संगीता कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ à¤à¤¾. तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸à¤œà¥€ कृत ‘दोहावली’ का कलातà¥à¤®à¤• वैषिषà¥à¤Ÿà¤¯. Int J Appl Res 2018;4(1):524-526.