Contact: +91-9711224068
International Journal of Applied Research
  • Multidisciplinary Journal
  • Printed Journal
  • Indexed Journal
  • Refereed Journal
  • Peer Reviewed Journal

ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

IMPACT FACTOR (RJIF): 8.4

Vol. 4, Issue 1, Part F (2018)

महाकवि कालिदास और मेघदूत

महाकवि कालिदास और मेघदूत

Author(s)
प्रशांत कुमार
Abstract
महाकवि कालिदास वैदिक साहित्य में वर्णित-‘‘त्वमस्माकं तवस्मसि’’ अर्थात् हे प्रभो ! आप हमारे हैं और हम आपके हैं’’ से परिचित हैं, और अनिर्वचनीयं प्रेम-स्वरूपम्’ के पक्षधर। वे वैष्णव परम्परा प्रोक्त प्रेम के इन दो स्वरूपों में अपनी आस्था प्रकट करते दिखते हैं- निगुर्ण, निराकार, निर्विकार एवं निखिल, ऐश्वर्य, माधुर्य, आनन्द, एवं सौन्दर्य आदि अनन्त सद्गुण प्रेम। यह प्रेम जीवन का रमणीय रहस्य है और काव्य-सौन्दर्य का अलौकिक आधार भी। जितने भी महाकवि अथ च रचनाकार हुए हैं उनकी काव्यतन्त्रियों में प्रेम एवं सौन्दर्य की ध्वनी निहित है। कालिदास की काव्य, सरस्वती प्रेम की मूलवर्तिनी वृत्रियों एवं क्षुधाओं को जगाती हुयी उनके नियामक मयादाओं में बांध देती है। उनके काव्य में प्रेम का सूक्ष्म एवं स्थूल स्वरूप प्रकट हुआ है। कालिदास प्रेमगीत के गायक हैं। वे नयनाभिराम रूप की मादक छवियों की भावना से जैसे वे एकदम चमत्कृत हो जाते हैं, वैसे ही प्रणय रस को अत्यन्त मन्द, अत्यन्त मादक तथा अतिशय गंभीर स्रोतस्विनी प्रवाहित करके वे सहृदय भावुकों को सर्वथा आत्म विभोर कर देते हैं।
Pages: 568-571  |  1948 Views  1532 Downloads


International Journal of Applied Research
How to cite this article:
प्रशांत कुमार. महाकवि कालिदास और मेघदूत. Int J Appl Res 2018;4(1):568-571.
Call for book chapter
International Journal of Applied Research
Journals List Click Here Research Journals Research Journals