Vol. 4, Issue 1, Part F (2018)
वैदिक काल में उद्योग, शिल्प तथा व्यापार एवं वाणिज्य की स्थिति
वैदिक काल में उद्योग, शिल्प तथा व्यापार एवं वाणिज्य की स्थिति
Author(s)
पूनम कुमारी
Abstract
वैदिक काल के आरंà¤à¤¿à¤• चरणों में लोगों को जो सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤à¤ थी अब उनपर कà¥à¤ ाराघात होने लगा था जिसका पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ समाज वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ पर पड़ रहा था। इसके कारण अरà¥à¤¥ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ à¤à¥€ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ हो रही थी। पूरà¥à¤µ के यà¥à¤—ों में वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°à¥€ उनà¥à¤®à¥à¤•à¥à¤¤ होकर सामà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤• वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° किया करते थे। लेकिन सूतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ ने समà¥à¤¦à¥à¤° यातà¥à¤°à¤¾ को निषिदà¥à¤§ कर दिया। बौधायन सूतà¥à¤° में कहा गया कि शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤° à¤à¤µà¤‚ ऊन का वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° तथा समà¥à¤¦à¥à¤° यातà¥à¤°à¤¾ निंदित करà¥à¤® है। समà¥à¤¦à¥à¤° यातà¥à¤°à¤¾ करने से मनà¥à¤·à¥à¤¯ पतित हो जाता है। इससे यह पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता है कि सूतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤² में आकर सामूहिक वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° निषिदà¥à¤§ माना जाने लगा था और विदेशी वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° बहà¥à¤¤ ही सीमित हो चला था। जाहिर है कि इस तरह की जटिलताओं à¤à¤µà¤‚ वरà¥à¤œà¤¨à¤¾à¤“ं के कारण शिलà¥à¤ªà¥€ à¤à¤µà¤‚ वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°à¥€ वरà¥à¤— पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ होने लगे जिसका पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ उदà¥à¤¯à¥‹à¤— à¤à¤µà¤‚ वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° पर पड़ने के साथ-साथ नगरीकरण पर à¤à¥€ पड़ा होगा। निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ रूप से वैदिक काल का अंतिम चरण उदà¥à¤¯à¥‹à¤—, वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ à¤à¤µà¤‚ नगरीकरण के लिये सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤¦ नहीं रह गया था।
How to cite this article:
पूनम कुमारी. वैदिक काल में उद्योग, शिल्प तथा व्यापार एवं वाणिज्य की स्थिति. Int J Appl Res 2018;4(1):597-600.