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International Journal of Applied Research
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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Peer Reviewed Journal

Vol. 4, Issue 11, Part D (2018)

मनीषा कुलश्रेष्ठ कहानी संग्रह ‘गन्धर्वं - गाथा’ राष्ट्रीय एक परिप्रेक्ष्य में

मनीषा कुलश्रेष्ठ कहानी संग्रह ‘गन्धर्वं - गाथा’ राष्ट्रीय एक परिप्रेक्ष्य में

Author(s)
सुनीता वर्मा
Abstract
वीर रस होता जहाँ श्रृंगार है। देश गौरव की शिथिलता है वहाँ। तात्पर्य यह है कि देश गौरव एवं राष्ट्र भक्ति के लिए श्रृंगार या भोगवादी उपभोक्तावादी संस्कृति से मुक्ति बेहद जरूरी है। भोगवादी संस्कृति पूंजीवादी बाजार का अभिन्न अंग है पूंजीवादी बाजार के निर्माण के कारण राष्ट्रीयताओं एवं राष्ट्र का उदय होता है, सामान्य भाषा, सामान्य संस्कृति और सामान्य बाजार आधुनिक राष्ट्रीयता का आधार है भोगवादी संस्कृति जिस तरह मध्यकाल मे राष्ट्र भक्त बनने से रोकती थी वही दूसरी ओर उपभोक्तावादी संस्कृति का विस्तार नए युग मे राष्ट्रवादी भाव बोध का क्षय करता है, राष्ट्रीयताओं को विखंडित करता और अंधराष्ट्रवाद को पैदा करता है मध्यकाल मे श्रृंगार रस की प्रधानता एवं राष्ट्र भक्ति के अभाव के बीच गहरा रिश्ता था तो आधुनिककाल मे उपभोक्तावाद, अंधराष्ट्रवाद एवं पृथकतावाद के बीच मे गहरा रिश्ता देखा जा सकता है दोनो ही अवस्थाओं मे राष्ट्रबोध का क्षय होता है मध्यकाल मे कवि श्रृंगार रस मे डूबे हुए थे तो आधुनिक काल मे वस्तु भक्त हो गए है। ‘गन्धर्व गाथा’ कहानी संग्रह मे मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानियों मे इसी तरह की वस्तु भक्ति व हिन्दू - मुस्लिम साम्प्रदायिक दंगो जो भारत विभाजन से लेकर आज के आधुनिकीकरण के दौर मे भी देश की राष्ट्रीय एकता व विकास को ध्वस्त कर रहे है का व्याख्यान किया है कोई भी साहित्यकार प्रत्येक युग की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय चेतना के उदाहरणों को सामने रखकर ही विश्लेषण के द्वारा अपने युग की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक - सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राष्ट्रीय चेतना से प्रभावित होता है।
Pages: 230-233  |  1338 Views  158 Downloads


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How to cite this article:
सुनीता वर्मा. मनीषा कुलश्रेष्ठ कहानी संग्रह ‘गन्धर्वं - गाथा’ राष्ट्रीय एक परिप्रेक्ष्य में. Int J Appl Res 2018;4(11):230-233.
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