Vol. 4, Issue 6, Part E (2018)
मुर्दहिया: अपराजेय योद्धा की विराट् युद्ध कथा!
मुर्दहिया: अपराजेय योद्धा की विराट् युद्ध कथा!
Author(s)
राजीव कुमार प्रसाद
Abstract
मुर्दहिया दलित साहित्यकार डॉ॰ तुलसीराम की आत्मकथा है, जिसके माध्यम से लेखक ने कई वर्षों से दलित आत्मकथाओं में साहित्य जगत के बंधे-बंधाये मानदण्डों को तोड़कर अपने जीवन से जुड़े उस सच्चे और कड़ुवे यथार्थ को सबके सामने उजागर करने का प्रयास किया है, जिसे उन्होंने स्वयं झेला। यदि ‘जूठन’ भारत के पश्चिमी उत्तर-प्रदेश की ब्राह्मणवादी, सामंती मानसिकता के उत्पीड़न की अभिव्यक्ति है तो ‘मुर्दहिया’ पूर्वी उत्तर प्रदेश के ग्रामीण अंचल में शिक्षा के लिए जूझते एक दलित की मार्मिक अभिव्यक्ति है। जहां सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक विसंगतियां क़दम–क़दम पर दलित का रास्ता रोक कर खड़ी हो जाती है और उसके भीतर हीनताबोध पैदा करने के तमाम षड्यंत्र रचती है। लेकिन एक दलित संघर्ष करते हुए इन तमाम विसंगतियों से अपने आत्मविश्वास के बल पर बाहर आता है और जेएनयू जैसे विश्वविद्यालय में विदेशी भाषा का विद्वान बनता है। यही इस रचना को एक गंभीर सरोकारों की रचना बनाता है जिसे पाठक और आलोचक सभी स्वीकार करते हैं। यह आत्मकथा दलित शिक्षा की वास्तवविकता और दलितों के लिए इसकी असंभाव्यता को बहुत सहजता से अभिव्यक्त करती है। आत्मकथा में दलित शिक्षा की दशा का जो चित्र खींचा गया है, उससे लगता है कि भारत के शिक्षा के इतिहास को दुबारा लिखा जाना चाहिए। सिर्फ फूलो दंपति और अंबेदकर के योगदान का रेखांकित कर इसे पूरा नहीं किया जा सकता। इसे मुक्कमल बनाने के लिए देश के कोने-कोने से कई तुलसीरामों के अनुभवों को समेटना होगा। मुर्दहिया एक अपराजेय योद्धा की विराट् युद्ध कथा है। लेखक ने अपने इस भीषण युद्ध को पूरे दलित समाज के युद्ध से जोड़ कर इसे समग्र रूप देने की चेष्टा की है। यह युद्ध किसी खास कौम या जाति के खिलाफ नहीं बल्कि उस पूरे जातिवादी सिस्टम के खिलाफ है जो दलितों को इस जहालतपूर्ण जिंदगी जीने के लिए विवश किए हुए है।
How to cite this article:
राजीव कुमार प्रसाद. मुर्दहिया: अपराजेय योद्धा की विराट् युद्ध कथा!. Int J Appl Res 2018;4(6):393-397.