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International Journal of Applied Research
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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Peer Reviewed Journal

Vol. 4, Issue 7, Part A (2018)

मिथिला का समकालिन धर्म-शाक्त एवं शाक्तयेत्तर धर्म में ब्रह्म का तादात्म्य

मिथिला का समकालिन धर्म-शाक्त एवं शाक्तयेत्तर धर्म में ब्रह्म का तादात्म्य

Author(s)
प्रीति प्रिया
Abstract
वैसे तो धर्म कब प्रारम्भ हुआ और उसका प्राचीनतम स्वरूप तथा नाम क्या था यह सही रूप में आज भी इतिहासकारों के लिए पहेली सा बना हुआ है। किन्तु इतना सत्य है कि आदिमानव जो जंगलों में यायावरी जिन्दगी जी रहा था, उसने तब तक किसी धर्म की कल्पना नहीं की थी जब तक कि उसके समझ एक बड़ा विपत्ति चुनौती बन कर खड़ा नहीं हो गया था। इतिहासकारों का मानना है कि ये लोग तब झुड़ों और समूहों में नहीं रहते थे। ये जानवरों के तरह शिकार मार कर खाते थे झरना और नदियों में जल पीते थे तथा कभी-किसी हिंसक पशुओं के खाली छोड़े गए मांद में अथवा किसी पेड़ के दरार के नीचे छीपकर जिन्दगी जी लेते थे।
Pages: 56-58  |  739 Views  142 Downloads


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How to cite this article:
प्रीति प्रिया. मिथिला का समकालिन धर्म-शाक्त एवं शाक्तयेत्तर धर्म में ब्रह्म का तादात्म्य. Int J Appl Res 2018;4(7):56-58.
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