Vol. 5, Issue 1, Part B (2019)
प्राचीन भारत में शिल्पी वर्ग एवं राज्य का नियंत्रणः एक अनुशीलन
प्राचीन भारत में शिल्पी वर्ग एवं राज्य का नियंत्रणः एक अनुशीलन
Author(s)
ललित कुमार झा
Abstract
सप्तांग राज्य सिद्धान्त के विवेचन के तहत कोष के संचय और उसके सम्यक संरक्षण पर विशेष ध्यान देते रहने की बातों को बहुत अधिक महत्त्व दिया गया है। कौटिल्य के शब्दों में कोष ही राज्य का मूल है । यह संचित और संरक्षित नहीं तो राज्य की कल्पना भी साकार नहीं हो सकती। अस्तु कोष का क्षेत्र बहुत ही व्यापक और विस्तृत है । चल-अचल सम्पति के स्रोत भी इसी में अन्तर्भक्त हैं पर रत्नों का संचय तो इसके उत्तम स्वास्थ्य का परिचायक है । अर्थशास्त्र में रत्न परीक्षा की नियमावली दी गयी है। संग्रह के पूर्व इनकी शुद्धता का एक खास मकसद था। मोती के कोई एक ही स्रोत नहीं थे। इसके .सही-सही स्थान निर्धारण ही मूल्य के आकलन का आधार बनता था। उच्च और निम्न कोटि के मोती की पहचान करके उसका उपयोग अलंकारों व निर्माण के लिए हो सकता था। उत्तम मोती का सचय कोष की वृद्धि करता है। इस पत्र मेें प्राचीन भारत में शिल्पी वर्ग एवं राज्य के नियंत्रण पर विश्लेषण प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।
How to cite this article:
ललित कुमार झा. प्राचीन भारत में शिल्पी वर्ग एवं राज्य का नियंत्रणः एक अनुशीलन. Int J Appl Res 2019;5(1):134-136.