Vol. 5, Issue 1, Part D (2019)
भारत में व्याप्त सामाजिक असमानता: एक विश्लेषणात्मक अध्ययन
भारत में व्याप्त सामाजिक असमानता: एक विश्लेषणात्मक अध्ययन
Author(s)
डाॅ0 संजू यादव
Abstract
भारत में जन्में और यहीं पले-बढ़े लोग जानते हैं कि सामाजिक असमानता जीवन की वास्तविकता है। हम गलियों में रेलवे प्लेटफाॅर्म पर भिखारियों को देखते हैं। हम छोटे-छोटे बच्चों को घरेलू नौकर भवन निर्माण कार्य करते हुए, सड़कों के किनारे बने छोटे बच्चों को जो कि नगरीय मध्य वर्ग के घरों में घरेलू नौकर के रूप में काम करते हैं, अपने बड़े बच्चों का स्कूल बस्ता ढोते हैं और कुछ इसका सामना करते हैं। इसी प्रकार महिलाओं के खिलाफ हिंसा एवं अल्पसंख्यक समूहों तथा अन्यथा सक्षम लोगों के बारें पूर्वाग्रह की खबरें भी हम रोजाना पढ़ते हैं। सामाजिक असमानता का यह रोजमर्रापन इनका इस प्रकार रोजाना घटित होना इन्हें स्वाभाविक बना देता हैं हमें लगने लगता है कि यह एकदम सामान्य बात है। ये कुदरती चीजें हैं जिन्हें बदला नहीं जा सकता। अगर हम असमानता को कभी-कभी अपरिहार्य नहीं भी मानते हैं तो अक्सर उचित या न्यायसंगत भी मानते हैं। षायद लोग गरीब अथवा वंचित इसलिए होते हैं क्योंकि उनमें या तो योग्यता नहीं होती या वे अपनी स्थिति को सुधारने के लिए पर्याप्त परिश्रम नहीं करते। एंसा मानकर हम उन्हें ही उनकी परिस्थितियों के लिए दोषी ठहराते हैं। यदि वे अधिक परिश्रम करते या बुद्धिमान होते तो वहां नहीं होते जहों वे आज हैं।
How to cite this article:
डाॅ0 संजू यादव. भारत में व्याप्त सामाजिक असमानता: एक विश्लेषणात्मक अध्ययन. Int J Appl Res 2019;5(1):255-257.