Vol. 5, Issue 1, Part F (2019)
जगदीश चन्द्र माथुर के नाटकों में चरित्र-सृष्टि
जगदीश चन्द्र माथुर के नाटकों में चरित्र-सृष्टि
Author(s)
मुकेश कुमार महतो
Abstract
जगदीशचन्द्र माथुर की चरित्र-सृष्टि का आधार यथार्थ है। यथार्थ इसलिए कि उन्होंने अपने पात्रों के लिए जो नाट्य-संसार निर्मित किया है वह सर्वथा उसके अनुरूप है। उनके नाटकों का मनोमय जगत् इतिहास, जनश्रुति, मिथक और कल्पना पर आधारित हैय उसके अनुरूप ही उनके पात्र एक प्रकार की वस्तुगत और भावगत विश्वसनीयता को उजागर करते हैं। ऐतिहासिक नाटकों की धारा में सम्भवतः कोणार्क मोड़ का पहला महत्त्वपूर्ण बिन्दु था, जिसमें इतिहास का यथार्थ-बोध झलकता है। उसी परम्परा में शारदीया में रोमानी वातावरण इन्द्रधनुष की भाँति लहराता दिखाई देता है, किन्तु उसके पात्र यथार्थ जीवन के सुन्दर और असुन्दर, नैतिक और अनैतिक, सत् और असत् के तीखे-मीठे चूँट पीते हैं और समूची निर्मम वास्तविकता में जीवन के मूल स्वर को वाणी देते हैं। जहाँ तक पहला राजा का प्रश्न है, यह कहना अनुचित न होगा कि ऊपर से अयथार्थ लगनेवाली यह कृति मूल मानवीय यथार्थ का कहीं अधिक प्रामाणिक उद्घाटन करती है, किन्तु माथुर का यथार्थ एक ऐसी निर्मित और सर्जनाग्राही मनःस्थिति का यथार्थ है, जिसमें अयथार्थ भी यथार्थ जैसी विश्वसनीयता प्राप्त कर लेता है। माथुर के नाटकीय पात्र प्रसाद की भाँति एकदम आदर्श से उद्भूत नहीं हैं। वे कल्पना के योग से अवश्य रचे गए हैं, पर वे यथार्थ की भावभूमि पर युग के परिवेश में उतारे गए हैं। इसलिए उनमें इतिहास और मिथक भी है और समकालीन मानव का अन्तर्बाह्य जीवन भी प्रच्छन्न रूप से अन्तर्निहित है।
How to cite this article:
मुकेश कुमार महतो. जगदीश चन्द्र माथुर के नाटकों में चरित्र-सृष्टि. Int J Appl Res 2019;5(1):558-562.