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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

IMPACT FACTOR (RJIF): 8.4

Vol. 5, Issue 12, Part E (2019)

भारतीय समाज में बाल अपराध की समस्या

भारतीय समाज में बाल अपराध की समस्या

Author(s)
डाॅ0 पिंकी कुमारी
Abstract
भारत में सामान्य रूप में छोटे अपराध और विशेषरूप में जघन्य अपराध बच्चों द्वारा नियमित रूप से किये जा रहे हैं। चोरी, सेंधमारी, झटके से छीनने जैसे अपराध जिनकी प्रकृति बहुत गंभीर नहीं हैं या डकैती, लूटमार, हत्या और दुष्कर्म आदि जैसे अपराध जो गंभीर प्रकृति से संबंधित है पूरे देश में उत्थान पर हैं और सबसे दुर्भाग्य की बात ये है कि इस तरह के सभी अपराध 18 साल की आयु से कम के बच्चों द्वारा किये जा रहे हैं। इस प्रकार बाल अपराध में बालकों के असमाजिक व्यवहारों को लिया जाता है अथवा बालकों के ऐसे व्यवहार को लोक कल्याण की दृष्टि से अहितकर होते हैं, ऐसे कार्यों को करने वाला बाल अपराधी कहलाता है। राॅब्न्सिन के अनुसार आवारागर्दी, भीख माँगना, निरूद्देश्य इधर-उधर घूमना, उदण्डता बाल अपराधी के लक्षण है। गरीबी सबसे बड़ा कारण है जो बच्चे को अपराधिक गतिविधियों में शामिल होने के लिये मजबूर करती है। इसके अलावा आजकल सामाजिक मीडिया की भूमिका को किशोरों के मस्तिष्क में सकारात्मक प्रभाव के स्थान पर नकारात्मक प्रभाव अधिक डालती है।
Pages: 304-307  |  475 Views  6 Downloads
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How to cite this article:
डाॅ0 पिंकी कुमारी. भारतीय समाज में बाल अपराध की समस्या. Int J Appl Res 2019;5(12):304-307.
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