Vol. 5, Issue 5, Part D (2019)
पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ के नाटकों में सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€-पातà¥à¤°à¥‹à¤‚ का सामाजिक परिवेश और संघरà¥à¤·
पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ के नाटकों में सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€-पातà¥à¤°à¥‹à¤‚ का सामाजिक परिवेश और संघरà¥à¤·
Author(s)
अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€
Abstract
पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ के नाटकों में सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤ अनेक रूपों में हमारे सामने दिखाई देती हैं। अब बात आती है परिवेश और संघरà¥à¤· की। परिवेश वह चीज है जिसमें रह कर मनà¥à¤·à¥à¤¯ जीवन-यापन करते हैं और वह मनà¥à¤·à¥à¤¯ के कारà¥à¤¯, आचरण और वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° को पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ à¤à¥€ करता है। परिवेश को शबà¥à¤¦à¤¾à¤°à¥à¤¥-विचार कोश में इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° परिà¤à¤¾à¤·à¤¿à¤¤ किया गया है-‘परिवेश का पहला अरà¥à¤¥ है -घेरा या परिधि और दूसरा अरà¥à¤¥ है- वह आà¤à¤¾-मणà¥à¤¡à¤² या पà¥à¤°à¤à¤¾-मणà¥à¤¡à¤² जो उजà¥à¤œà¥à¤µà¤² पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ के चारों ओर और बड़े-बड़े महापà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ के मà¥à¤–-मणà¥à¤¡à¤² के चारांे ओर या तो दिखायी देता है या कलà¥à¤ªà¤¿à¤¤ कर लिया जाता है, परनà¥à¤¤à¥ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤‚ग में इसका अरà¥à¤¥ होता है-आस-पास की वे अवसà¥à¤¥à¤¾à¤à¤ आदि जिनका मनà¥à¤·à¥à¤¯ के कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ और वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ पर परिचालक पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ होता है। इसमें आरà¥à¤¥à¤¿à¤•, नैतिक, सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• और सामाजिक सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का à¤à¥€ अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤à¤¾à¤µ माना जाता है, जैसेः जिस देहाती परिवेश में उनकी बालà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ और यà¥à¤µà¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ बीती थी, उसमें उनके लिठकिसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° का औदà¥à¤¯à¥‹à¤—िक, वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• या शैकà¥à¤·à¤£à¤¿à¤• उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ के लिठकोई अवकाश नहीं था।। अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ वे वहाठरहकर अचà¥à¤›à¥€ या विशेष उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ नहीं कर सकते थे। जीव-जनà¥à¤¤à¥à¤“ं, वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ आदि के पà¥à¤°à¤¸à¤‚ग में इस शबà¥à¤¦ के अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤—त उन जलाशयों, परà¥à¤µà¤¤à¥‹à¤‚, वनों आदि का à¤à¥€ अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤à¤¾à¤µ हो जाता है जिनके आस-पास या बीच में रहकर वे जीवन बिताते या विचरण करते हैं।‘
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अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€. पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ के नाटकों में सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€-पातà¥à¤°à¥‹à¤‚ का सामाजिक परिवेश और संघरà¥à¤·. Int J Appl Res 2019;5(5):280-281.