Vol. 5, Issue 5, Part D (2019)
प्रसाद के नाटकों में स्त्री-पात्रों का सामाजिक परिवेश और संघर्ष
प्रसाद के नाटकों में स्त्री-पात्रों का सामाजिक परिवेश और संघर्ष
Author(s)
अर्चना कुमारी
Abstract
प्रसाद के नाटकों में स्त्रियाँ अनेक रूपों में हमारे सामने दिखाई देती हैं। अब बात आती है परिवेश और संघर्ष की। परिवेश वह चीज है जिसमें रह कर मनुष्य जीवन-यापन करते हैं और वह मनुष्य के कार्य, आचरण और व्यवहार को प्रभावित भी करता है। परिवेश को शब्दार्थ-विचार कोश में इस प्रकार परिभाषित किया गया है-‘परिवेश का पहला अर्थ है -घेरा या परिधि और दूसरा अर्थ है- वह आभा-मण्डल या प्रभा-मण्डल जो उज्ज्वल पदार्थों के चारों ओर और बड़े-बड़े महापुरुषों के मुख-मण्डल के चारांे ओर या तो दिखायी देता है या कल्पित कर लिया जाता है, परन्तु प्रस्तुत प्रसंग में इसका अर्थ होता है-आस-पास की वे अवस्थाएँ आदि जिनका मनुष्य के कार्यों और व्यवहारों पर परिचालक प्रभाव होता है। इसमें आर्थिक, नैतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक स्थितियों का भी अन्तर्भाव माना जाता है, जैसेः जिस देहाती परिवेश में उनकी बाल्यावस्था और युवावस्था बीती थी, उसमें उनके लिए किसी प्रकार का औद्योगिक, वैज्ञानिक या शैक्षणिक उन्नति के लिए कोई अवकाश नहीं था।। अर्थात् वे वहाँ रहकर अच्छी या विशेष उन्नति नहीं कर सकते थे। जीव-जन्तुओं, वनस्पतियों आदि के प्रसंग में इस शब्द के अन्तर्गत उन जलाशयों, पर्वतों, वनों आदि का भी अन्तर्भाव हो जाता है जिनके आस-पास या बीच में रहकर वे जीवन बिताते या विचरण करते हैं।‘
How to cite this article:
अर्चना कुमारी. प्रसाद के नाटकों में स्त्री-पात्रों का सामाजिक परिवेश और संघर्ष. Int J Appl Res 2019;5(5):280-281.