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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Peer Reviewed Journal

Vol. 5, Issue 5, Part D (2019)

पूर्व मध्यकालीन भारत में स्थापत्य एंव मूर्त्तिकला — एक समीक्षात्मक विश्लेषण

पूर्व मध्यकालीन भारत में स्थापत्य एंव मूर्त्तिकला — एक समीक्षात्मक विश्लेषण

Author(s)
नरेश राम
Abstract
पूर्व मध्ययुग में कला और स्थापत्य के क्षेत्र में अत्यंत महत्त्वपूर्ण विकास हुए। कष्मीर, राजस्थान तथा ओडिषा सहित अन्य क्षेत्रों मैं स्थापत्य और मूर्तिकला की विषिष्ट क्षेत्रीय शैलियां विकसित हुई। प्रायद्विपीय भारत में राष्ट्रकूट, पष्चिमी चालुक्य, पल्लव, होयसल तथा चोलों के संरक्षण में विषाल स्तर पर निर्माण कार्य देखा गया। पूर्व की शताब्दियों से भिन्न, जब अधिकांष स्थापत्य सम्बंधी अवषेषों की प्रकृति बौद्ध थी, इस काल में हिंदू मंदिरों का निर्माण कार्य कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया।
षिल्पषास्त्रों (वास्तु और स्थापत्य पर लिखे ग्रंथ) की पर्याप्त संरचना पूर्व मध्य युग में की गई है। (प्राचीन तथा पूर्व मध्ययुगीन संरचनाओं में विषेषकर प्रतोलि, गोपुर तथा तोरण के संदर्भ में, शास्त्र और प्रयोग के बीच वास्तविक सम्बंध को ढूंढने का प्रयास किया गया है, इनमें तीन मुख्य मंदिरों में स्थापत्य शैलियों का वर्णन मिलता है - नागर, द्रविड़ तथा वेसर। हिमालय से विन्ध्य के बीच की भूमि नागर शैली की है कृष्ण तथा कावेरी नदियों के बीच की भूमि द्रविड़ शैली की उत्कर्ष भूमि है, जबकि बेसर शैली का क्षेत्र विन्ध्य से कृष्णा नदी के बीच का है। मंदिर शैलियों का अध्ययन तत्कालीन मंदिरों के विद्यमानों अवषेषों के अध्ययन द्वारा किया जा सकता है।
Pages: 282-285  |  6365 Views  1104 Downloads


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How to cite this article:
नरेश राम. पूर्व मध्यकालीन भारत में स्थापत्य एंव मूर्त्तिकला — एक समीक्षात्मक विश्लेषण. Int J Appl Res 2019;5(5):282-285.
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