Vol. 5, Issue 8, Part G (2019)
हिनà¥à¤¦à¥€ ग़ज़ल में दरकते रिशà¥à¤¤à¥‡
हिनà¥à¤¦à¥€ ग़ज़ल में दरकते रिशà¥à¤¤à¥‡
Author(s)
डाॅ. देवी पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦
Abstractहिनà¥à¤¦à¥€ ग़ज़ल का अपना रूप, संवेदना और षिलà¥à¤ª है। यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ हिनà¥à¤¦à¥€ ग़ज़ल पर उरà¥à¤¦à¥‚ ग़ज़ल का पूरा पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ है, परनà¥à¤¤à¥ हिनà¥à¤¦à¥€ में आकर इसका विषय बदल गया है। हिनà¥à¤¦à¥€ ग़ज़लकारों ने अपनी ग़ज़लों में आम आदमी के दà¥à¤ƒà¤–-दरà¥à¤¦ को पूरà¥à¤£ संवेदना के साथ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया है। इन ग़ज़लकारों की कोषिष है कि मनà¥à¤·à¥à¤¯ को सचà¥à¤šà¥‡ अरà¥à¤¥à¥‹à¤‚ में मनà¥à¤·à¥à¤¯ बनाया जाà¤à¥¤ यदि मनà¥à¤·à¥à¤¯ में मनà¥à¤·à¥à¤¯à¤¤à¤¾ नहीं है, तो वह हाड़-मांस के पिणà¥à¤¡ के अलावा कà¥à¤› नहीं है। हिनà¥à¤¦à¥€ ग़ज़ल समाज में वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ बà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚, विदà¥à¤°à¥‚पताओं, समसà¥à¤¯à¤¾à¤“ं का चितà¥à¤°à¤£ कर मानव को संवेदनषील बनाकर à¤à¤• सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°, समतावादी समाज के निरà¥à¤®à¤¾à¤£ का काम कर रही है और यही साहितà¥à¤¯ का पà¥à¤°à¤®à¥à¤– उदà¥à¤¦à¥‡à¤·à¥à¤¯ à¤à¥€ है।
How to cite this article:
डाॅ. देवी पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦. हिनà¥à¤¦à¥€ ग़ज़ल में दरकते रिशà¥à¤¤à¥‡. Int J Appl Res 2019;5(8):417-420.