Vol. 5, Issue 8, Part G (2019)
हिन्दी ग़ज़ल में दरकते रिश्ते
हिन्दी ग़ज़ल में दरकते रिश्ते
Author(s)
डाॅ. देवी प्रसाद
Abstractहिन्दी ग़ज़ल का अपना रूप, संवेदना और षिल्प है। यद्यपि हिन्दी ग़ज़ल पर उर्दू ग़ज़ल का पूरा प्रभाव है, परन्तु हिन्दी में आकर इसका विषय बदल गया है। हिन्दी ग़ज़लकारों ने अपनी ग़ज़लों में आम आदमी के दुःख-दर्द को पूर्ण संवेदना के साथ प्रस्तुत किया है। इन ग़ज़लकारों की कोषिष है कि मनुष्य को सच्चे अर्थों में मनुष्य बनाया जाए। यदि मनुष्य में मनुष्यता नहीं है, तो वह हाड़-मांस के पिण्ड के अलावा कुछ नहीं है। हिन्दी ग़ज़ल समाज में व्याप्त बुराइयों, विद्रूपताओं, समस्याओं का चित्रण कर मानव को संवेदनषील बनाकर एक सुन्दर, समतावादी समाज के निर्माण का काम कर रही है और यही साहित्य का प्रमुख उद्देष्य भी है।
How to cite this article:
डाॅ. देवी प्रसाद. हिन्दी ग़ज़ल में दरकते रिश्ते. Int J Appl Res 2019;5(8):417-420.