Vol. 6, Issue 1, Part C (2020)
डॉ. à¤à¥€à¤®à¤°à¤¾à¤µ अमà¥à¤¬à¥‡à¤¡à¤•à¤° और पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤‚तà¥à¤° की आलोचनातà¥à¤®à¤• वà¥à¤¯à¤¾à¤–à¥à¤¯à¤¾
डॉ. à¤à¥€à¤®à¤°à¤¾à¤µ अमà¥à¤¬à¥‡à¤¡à¤•à¤° और पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤‚तà¥à¤° की आलोचनातà¥à¤®à¤• वà¥à¤¯à¤¾à¤–à¥à¤¯à¤¾
Author(s)
डाॅ. कपिल खरे
Abstractडॉ. à¤à¥€à¤®à¤°à¤¾à¤µ अमà¥à¤¬à¥‡à¤¡à¤•à¤° वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ समय में हमारे समकà¥à¤· आधà¥à¤¨à¤¿à¤• मिथà¤à¤‚जक के रूप में पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ है। à¤à¤¾à¤°à¤¤ और पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤‚तà¥à¤° के विषय में परंपरावादियों, सनातनियों, डेमोकà¥à¤°à¥‡à¤Ÿ, बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤œà¥€à¤µà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ और शासकों आदि के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अनेक मिथकों का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤° किया गया है। ये मिथक आज à¤à¥€ आम जनता में अपनी जड़ें मजबूती से जमाठहà¥à¤ हैं।
डॉ. à¤à¥€à¤®à¤°à¤¾à¤µ अमà¥à¤¬à¥‡à¤¡à¤•à¤° की à¤à¤• और चेतावनी आज बिलà¥à¤•à¥à¤² सच साबित होती जा रही है। संविधान सà¤à¤¾ में दिठगठअपने अंतिम à¤à¤¾à¤·à¤£ में वह कहते हैं -’ कà¥à¤¯à¤¾ इतिहास खà¥à¤¦ को दोहराà¤à¤—ा? यह बात चिंतित करती है। जात-पात, पंथ जैसे अपने पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ शतà¥à¤°à¥ के अलावा, आगे हमारे पास विविध à¤à¤µà¤‚ विरोधी मानसिकता के राजनीतिक दल होंगे? कà¥à¤¯à¤¾ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ लोग उनके मत के ऊपर देश को जगह देंगे या वे लोग देश से ऊपर अपने मत को जगह देंगे? लेकिन इतना तय है कि अगर ये राजनीतिक दल देश के ऊपर अपने मत को रखते हैं, तो निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ ही हमारी सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ खतरे में दूसरी बार पहà¥à¤‚च जाà¤à¤—ी और शायद हम हमेशा के लिठइसे खो दें। इस सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ से बचने के लिठहम सबको सखà¥à¤¤à¥€ से उठखड़ा होना होगा।’
अब सवाल यह उठता है कि हिंदà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ में à¤à¤• आम आदमी का मूलà¥à¤¯ कà¥à¤¯à¤¾ है? मूलà¥à¤¯ से अरà¥à¤¥ यह है कि à¤à¤• आम आदमी की वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ होने की गरिमा कà¥à¤¯à¤¾ है? उस मानवीय गरिमा का कà¥à¤¯à¤¾ मूलà¥à¤¯ है?
यह जानना à¤à¥€ आवशà¥à¤¯à¤• है कि जिस à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संविधान के रचनाकार होने का गौरव उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ दिया जाता है, उस संविधान के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ उनके मन का à¤à¤¾à¤µ कà¥à¤¯à¤¾ था? यह जानने के लिठराजà¥à¤¯à¤¸à¤à¤¾ के पटल पर 2 सितमà¥à¤¬à¤°, 1953 को बोले गये उनके शबà¥à¤¦ सामने रखने चाहिà¤à¥¤ राजà¥à¤¯à¤¸à¤à¤¾ में डॉ. à¤à¥€à¤®à¤°à¤¾à¤µ अमà¥à¤¬à¥‡à¤¡à¤•à¤° ने कहा था -’मà¥à¤à¥‡ बार-बार बताया जाता है कि तà¥à¤® इस संविधान के रचयिता हो। दरअसल मà¥à¤à¥‡ अपनी इचà¥à¤›à¤¾ के विरà¥à¤¦à¥à¤§ यह करना पड़ता था जो करने को मà¥à¤à¥‡ कहा जाता था। मैं यह कहने को तैयार हूं कि इस संविधान को जलाने वाला मैं पहला वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ रहूंगा। मैं इसे बिलà¥à¤•à¥à¤² पंसद नहीं करता। यह किसी के लिठअनà¥à¤•à¥‚ल नहीं है।’
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डाॅ. कपिल खरे. डॉ. à¤à¥€à¤®à¤°à¤¾à¤µ अमà¥à¤¬à¥‡à¤¡à¤•à¤° और पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤‚तà¥à¤° की आलोचनातà¥à¤®à¤• वà¥à¤¯à¤¾à¤–à¥à¤¯à¤¾. Int J Appl Res 2020;6(1):136-139.