International Journal of Applied Research
Vol. 6, Issue 2, Part E (2020)
समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में दलित और मानवाधिकार
Author(s)
डॉ. मृत्युंजय कुमार
Abstract
भारत में मानवाधिकार का विषय काफी विस्तृत और जटिल है। दलित समुदाय के साथ मानवाधिकार हनन में मूल रूप से जाति व्यवस्था, आर्थिक असमानता, राजनीतिक गैरबराबरी, सांस्कृतिक भेदभाव और जेंडर आधारित पक्षपात जैसी समस्याएं जुड़ी हैं। हालाँकि, सरकार और संविधान दोनों ने इसके लिए व्यापक कार्य किया और यह प्रयास आज भी जारी है। आजादी के बाद भारतीय संविधान में कई प्रकार के अनुच्छेदों का निर्माण किया गया ताकि दलित समुदाय के साथ शोषण और अत्याचार नहीं हों, लेकिन जाति आधारित संरचना इतनी ताकतवर संस्था है जिसके कारण आज भी दलित समुदाय के साथ मानवाधिकार का उल्लंघन हो रहा है। ऐसे इस घटनाओं में कमी तो आ रही है लेकिन तुलनात्मक रूप से निम्न समाजिक समूह के साथ मानवाधिकार उल्लंघन की घटना रूक नहीं पा रही है। इस प्रकार की घटनाओं का दायरा भी काफी व्यापक है और इसका स्वरूप भी जटिल है। इस लेख में दलित का अर्थ अनुसूचित जाति से है। द्वितीयक स्रोतों के माध्यम से यह लेख लिखा गया है। अध्ययन यह बताते हैं कि जाति और मानवाधिकार के बीच गहरा संबध है, और जाति व्यवस्था में सबसे निम्न पायदान पर आने वाले दलित समुदाय आज भी जाति आधारित भेदभाव का सामना कर रहे हैं, यद्यपि भारतीय संविधान के द्वारा यह कहा गया है कि कानूनी तौर पर सभी मनुष्य बराबर है।
How to cite this article:
डॉ. मृत्युंजय कुमार. समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में दलित और मानवाधिकार. Int J Appl Res 2020;6(2):350-355.