International Journal of Applied Research
Vol. 6, Issue 3, Part A (2020)
बाजारवाद की गिरफ्त में हिन्दी मीडिया
Author(s)
नेहा कुमारी
Abstract
मीडिया और बाजार के नाजुक रिश्ते को समझने से पहले चंद सच को स्वीकार करके चलना होगा। मीडिया समाज का चैथा स्तम्भ होने के साथ-साथ एक व्यवसाय भी है। पूँजीवादी सभ्यता ने साहित्य, कला, संस्कृति यहाँ तक की ज्ञान को भी बाजार की वस्तु बनाकर रख दिया है। दुनिया के सामने सच की तस्वीर रखने का दावा करने वाली हमारी मीडिया, समाचार पत्र भी आज बाजार की गिरफ्त में आ गए हैं। ऐसा लगता है जैसे पत्रकारिता पत्रकारिता न होकर पूँजीपतियों और सरकारों की चाटुकारिता करती नजर आती है। खास तौर से भारत की पत्रकारिता का एक बड़ा हिस्सा शोषकों और साम्राज्यवादी ताकतों की ही वकालत करता दिखाई देता है। ऐसा हो भी क्यों न क्योंकि आज की पत्रकारिता इन्हीं पूँजीपतियों, भ्रष्टाचारियों और जमाखोरों के विज्ञापन के बलबूते जीवित है। ऐसा इसलिए भी हो रहा है क्योंकि आज का प्रकाशक, सम्पादक और पत्रकार जनसेवक नहीं अपितु वह देश के बड़े अमीरों की कतार में खड़ा होना चाहता है। आज का प्रकाशक, सम्पादक व मीडिया कर्मी यह पूरी तरह से भूल गया है कि पत्रकारिता के मायने क्या होते हैं और पत्रकारिता किसे कहते हैं।
How to cite this article:
नेहा कुमारी. बाजारवाद की गिरफ्त में हिन्दी मीडिया. Int J Appl Res 2020;6(3):07-08.