Abstract21वीं सदी में à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ समाज à¤à¤µà¤‚ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿, साहितà¥à¤¯ की दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤ में पूरे बदलाव के साथ अवतरित होता है। जिसमें 1991 में शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤ à¤à¤²à¥°à¤ªà¥€à¥°à¤œà¥€à¥° (सà¥à¤ªà¤‡à¤®à¤¤à¤‚सपà¥à¤°à¤‚जपवदठचà¥à¤¤à¤ªà¤…ंजपà¥à¤°à¤‚जपवदठळसवइंसपà¥à¤°à¤‚जपवद) अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ उदारीकरण, निजीकरण और à¤à¥‚मंडलीकरण वैशà¥à¤µà¥€à¤•à¤°à¤£ से पनपी बाजारवाद और उपà¤à¥‹à¤•à¥à¤¤à¤¾à¤µà¤¾à¤¦ इसके पà¥à¤°à¤®à¥à¤– बिनà¥à¤¦à¥ है, जिसने पूरी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤ को अपने बाजार के रूप में परिवरà¥à¤¤à¤¿à¤¤ कर दिया। विशà¥à¤µ की सरà¥à¤µà¥‹à¤šà¥à¤š शकà¥à¤¤à¤¿ ’सà¥à¤ªà¤° पाॅवर’ अमेरिका अपने रूप में ढालकर सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से अपना बनाने तथा आरà¥à¤¥à¤¿à¤•-दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से अपने नà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤ सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥à¥‹à¤‚ की संपूरà¥à¤¤à¤¿ के लिठपूरे विशà¥à¤µ को à¤à¤• रंग में रंगने के संकलà¥à¤ª को कारà¥à¤¯ रूप दे चà¥à¤•à¤¾ है। पूरा विशà¥à¤µ अमेरिका दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ परिकलà¥à¤ªà¤¿à¤¤ ‘माॅल संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿’ मातà¥à¤° बनकर रह गया है। यह वैशà¥à¤µà¥€à¤•à¤°à¤£ à¤à¤• पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से पूरी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤ का अमेरिकीकरण ही है जो सारे राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥‹à¤‚ की सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿, जातीय चेतना को पूरी तरह लील कर अपने रंग में रंग डालने की बड़ी à¤à¤¾à¤°à¥€ सफल कूटनीति है, जिसके कारण पूरा विशà¥à¤µ उसकी चेपट में आ चà¥à¤•à¤¾ है। à¤à¤• पà¥à¤°à¤à¤‚जन के पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤— से अमेरिकी अरà¥à¤¥à¤¨à¥€à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ और तथाकथित à¤à¥‚मंडलीय संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ चारों और अपना पाà¤à¤µ फैला चà¥à¤•à¥€ है।
यह सरà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¤¿à¤¤ à¤à¥€ है कि उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ विधा अपने उदà¥à¤à¤µ से लेकर आज तक विकासवान विधा रही है। इसमें न सिरà¥à¤« अपने समय के साथ तादातà¥à¤®à¤¯ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ किया है। बलà¥à¤•à¤¿ à¤à¤•à¤¾à¤§à¤¿à¤• बार à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ का सटीक आकलन कर विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ को अचंà¤à¤¿à¤¤ à¤à¥€ कर दिया है। आज वैशà¥à¤µà¤¿à¤• आरà¥à¤¥à¤¿à¤• विचारधारा का पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ साहितà¥à¤¯ पर हà¥-ब-हॠपड़ता दिख रहा हैं आज बाजारवादी वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ से हर कोई तà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤ है। सारी खà¥à¤µà¤¾à¤¹à¤¿à¤¶à¥‹à¤‚ को पाशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥à¤¯ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के रंग में रंग डालने की इचà¥à¤›à¤¾ पà¥à¤°à¤¬à¤² होती जा रही है। à¤à¤¾à¤µ, संवेदना, पà¥à¤°à¥‡à¤® का सà¥à¤µà¤° अब आम लोगों के जीवन से अलग होता जा रहा है, उसके सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर अब केवल और पूà¤à¤œà¥€, पैसा, सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥ ही पà¥à¤°à¤®à¥à¤– हो गया है। मोबाइल, इंटरनेट ही अब मनà¥à¤·à¥à¤¯ की दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤ बन चà¥à¤•à¥€ है। जिसमें सारी रिशà¥à¤¤à¤¾, नाता, सवेदना, संसà¥à¤•à¤¾à¤° सब-का-सब तार-तार हो रहा है। जिसे समकालीन हिनà¥à¤¦à¥€ उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ ने अपनी लेखनी से मà¥à¤–रता पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ की है। इन उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ में अलका सरावगी कृत ‘à¤à¤• बà¥à¤°à¥‡à¤• के बाद’, ममता कालिया कृत ‘दौड़’, पà¥à¤°à¤à¤¾ खेतान कृत ‘पीली आà¤à¤§à¥€’, पà¥à¤°à¤¦à¥€à¤ª सौरठकृत ‘मà¥à¤¨à¥à¤¨à¥€ मोबाइल’, रविनà¥à¤¦à¥à¤° वरà¥à¤®à¤¾ कृत ‘दस बरस का à¤à¤à¤µà¤°’ का नाम उलà¥à¤²à¥‡à¤–नीय है। इन उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ में वैशà¥à¤µà¥€à¤•à¤°à¤£ का पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ समकालीन à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ समाज व हिनà¥à¤¦à¥€ साहितà¥à¤¯ में जिस रूप में पड़ा है, उसे सशकà¥à¤¤à¤¾ के साथ मजबूती दिया है।