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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Peer Reviewed Journal

Vol. 6, Issue 9, Part C (2020)

समकालीन हिन्दी उपन्यास पर वैश्वीकरण का प्रभाव

समकालीन हिन्दी उपन्यास पर वैश्वीकरण का प्रभाव

Author(s)
संजय कुमार
Abstract
21वीं सदी में भारतीय समाज एवं संस्कृति, साहित्य की दुनियाँ में पूरे बदलाव के साथ अवतरित होता है। जिसमें 1991 में शुरू हुए एल॰पी॰जी॰ (स्पइमतंसप्रंजपवदए च्तपअंजप्रंजपवदए ळसवइंसप्रंजपवद) अर्थात् उदारीकरण, निजीकरण और भूमंडलीकरण वैश्वीकरण से पनपी बाजारवाद और उपभोक्तावाद इसके प्रमुख बिन्दु है, जिसने पूरी दुनियाँ को अपने बाजार के रूप में परिवर्तित कर दिया। विश्व की सर्वोच्च शक्ति ’सुपर पाॅवर’ अमेरिका अपने रूप में ढालकर सांस्कृतिक दृष्टि से अपना बनाने तथा आर्थिक-दृष्टि से अपने न्यस्त स्वार्थों की संपूर्ति के लिए पूरे विश्व को एक रंग में रंगने के संकल्प को कार्य रूप दे चुका है। पूरा विश्व अमेरिका द्वारा परिकल्पित ‘माॅल संस्कृति’ मात्र बनकर रह गया है। यह वैश्वीकरण एक प्रकार से पूरी दुनियाँ का अमेरिकीकरण ही है जो सारे राष्ट्रों की स्थानीय संस्कृति, जातीय चेतना को पूरी तरह लील कर अपने रंग में रंग डालने की बड़ी भारी सफल कूटनीति है, जिसके कारण पूरा विश्व उसकी चेपट में आ चुका है। एक प्रभंजन के प्रवेग से अमेरिकी अर्थनीतियाँ और तथाकथित भूमंडलीय संस्कृति चारों और अपना पाँव फैला चुकी है।
यह सर्वविदित भी है कि उपन्यास विधा अपने उद्भव से लेकर आज तक विकासवान विधा रही है। इसमें न सिर्फ अपने समय के साथ तादात्मय स्थापित किया है। बल्कि एकाधिक बार भविष्य का सटीक आकलन कर विद्वानों को अचंभित भी कर दिया है। आज वैश्विक आर्थिक विचारधारा का प्रभाव साहित्य पर हु-ब-हु पड़ता दिख रहा हैं आज बाजारवादी व्यवस्था से हर कोई त्रस्त है। सारी ख्वाहिशों को पाश्चात्य संस्कृति के रंग में रंग डालने की इच्छा प्रबल होती जा रही है। भाव, संवेदना, प्रेम का स्वर अब आम लोगों के जीवन से अलग होता जा रहा है, उसके स्थान पर अब केवल और पूँजी, पैसा, स्वार्थ ही प्रमुख हो गया है। मोबाइल, इंटरनेट ही अब मनुष्य की दुनियाँ बन चुकी है। जिसमें सारी रिश्ता, नाता, सवेदना, संस्कार सब-का-सब तार-तार हो रहा है। जिसे समकालीन हिन्दी उपन्यासकारों ने अपनी लेखनी से मुखरता प्रदान की है। इन उपन्यासकारों में अलका सरावगी कृत ‘एक ब्रेक के बाद’, ममता कालिया कृत ‘दौड़’, प्रभा खेतान कृत ‘पीली आँधी’, प्रदीप सौरभ कृत ‘मुन्नी मोबाइल’, रविन्द्र वर्मा कृत ‘दस बरस का भँवर’ का नाम उल्लेखनीय है। इन उपन्यासकारों में वैश्वीकरण का प्रभाव समकालीन भारतीय समाज व हिन्दी साहित्य में जिस रूप में पड़ा है, उसे सशक्ता के साथ मजबूती दिया है।
Pages: 148-152  |  3394 Views  821 Downloads


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How to cite this article:
संजय कुमार. समकालीन हिन्दी उपन्यास पर वैश्वीकरण का प्रभाव. Int J Appl Res 2020;6(9):148-152.
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