Vol. 7, Issue 1, Part F (2021)
रूप रस के कवि घनानंद
रूप रस के कवि घनानंद
Author(s)
डॉ. विजय कà¥à¤®à¤¾à¤°
Abstractघनानंद रीतिकालीन कविता को वेदना की सà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥à¤à¥‚ति से सà¥à¤ªà¤‚दित करने वाले à¤à¤• मातà¥à¤° कवि हैं। परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤µà¤¶ पà¥à¤°à¥‡à¤® में ठोकर खाकर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने लौकिक वासनातà¥à¤®à¤• पà¥à¤°à¥‡à¤® को परिषà¥à¤•à¥ƒà¤¤ कर उदातà¥à¤¤à¤¤à¤¾ के उस शिखर पर पहà¥à¤à¤šà¤¾ दिया जहाठउनकी पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤¿à¤•à¤¾ सà¥à¤œà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤¾à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ के आलंबन पà¥à¤°à¥à¤· शà¥à¤°à¥€à¤•à¥ƒà¤·à¥à¤£ का परà¥à¤¯à¤¾à¤¯ बन जाती है। à¤à¤• à¤à¤•à¤¾à¤¨à¥à¤¤ पà¥à¤°à¥‡à¤®à¥€ से कृषà¥à¤£ à¤à¤•à¥à¤¤ तक का उनका सफर विविध मनोदशाओं से à¤à¤°à¤¾ हà¥à¤† है, जिसकी वà¥à¤¯à¤‚जना उनके कावà¥à¤¯ में हà¥à¤ˆ है।
घनानंद रूप और रस के कवि है। रूप-चितà¥à¤°à¤£ में उनका कोई जोड़ नहीं है। इसका कारण है कि कवि हृदय को किसी के रूप से रागातà¥à¤®à¤• संबंध है। विदà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¤à¤¿ या बिहारी जब नायिका के सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯ का चितà¥à¤°à¤£ करते हैं तो à¤à¤• तटसà¥à¤¥à¤¤à¤¾ का à¤à¤¾à¤µ à¤à¤²à¤•à¤¤à¤¾ है। घनानंद के सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯-चितà¥à¤°à¤£ में हृदय की पà¥à¤°à¤«à¥à¤²à¥à¤²à¤¨à¤¤à¤¾ है जो किसी पà¥à¤°à¥‡à¤®à¥€ कवि में ही संà¤à¤µ है। कवि ने मà¥à¤¹à¤®à¥à¤®à¤¦à¤¶à¤¾à¤¹ रंगीले की दरबारी नरà¥à¤¤à¤•à¥€ को नित नूतन रूप में देखा था जिसकी सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° चितà¥à¤°à¤®à¤¯à¥€ अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ उनके कावà¥à¤¯ में हà¥à¤ˆà¥¤
घनानंद अपनी कविता में ‘पà¥à¤°à¥‡à¤® का पीर’ बनकर उà¤à¤°à¤¤à¥‡ हैं। सà¥à¤œà¤¾à¤¨ के पà¥à¤°à¥‡à¤® में पगा कवि का हृदय उस समय हा! हा! खाकर वà¥à¤¯à¤¥à¤¿à¤¤ हो उठता है जब सà¥à¤œà¤¾à¤¨ उसे धोखा दे देती है। परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤µà¤¶ कवि उसी कातिल से नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ की गà¥à¤¹à¤¾à¤° लगा रहे हैं, ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ की दà¥à¤¹à¤¾à¤ˆ देते हैं – “कलपाओगे तो तà¥à¤® à¤à¥€ कलपोगे”। तदनà¥à¤¤à¤° हारे हà¥à¤ पà¥à¤°à¥‡à¤®à¥€ हृदय का परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¸à¤¾à¤¨ हम à¤à¤• कृषà¥à¤£à¤à¤•à¥à¤¤ कवि के रूप में पाते हैं, उसी समरà¥à¤ªà¤£ के साथ। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ संसार में सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° सà¥à¤œà¤¾à¤¨-ही सà¥à¤œà¤¾à¤¨ दिखाई देता है। परिणाम सà¥à¤µà¤°à¥‚प वे अपने आराधà¥à¤¯ को à¤à¥€ सà¥à¤à¤¾à¤¨ नाम से ही पà¥à¤•à¤¾à¤°à¤¤à¥‡ हैं –
“सदा कृपा निधान हौ कहा कहौ सà¥à¤œà¤¾à¤¨ हौ।”
‘सà¥à¤œà¤¾à¤¨ हित’, ‘सà¥à¤œà¤¾à¤¨ सागर’ आदि उनकी कृति उसी पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤¿à¤•à¤¾ को घनानंद का वियोग चितà¥à¤°à¤£ हिनà¥à¤¦à¥€ साहितà¥à¤¯ की अमूलà¥à¤¯ निधि है। सà¥à¤µà¤¯à¤‚ कहते à¤à¥€ हैं – “जोग-वियोग की रीति मैं कोविद।” उनके वियोग की वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ में उनका à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ साहितà¥à¤¯ à¤à¥€ आ गया है। पà¥à¤°à¥‡à¤® की पीड़ा सहने के कारण घनानंद की अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ में मारà¥à¤®à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ है जो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ रीति मà¥à¤•à¥à¤¤ कावà¥à¤¯à¤§à¤¾à¤°à¤¾ के कवियों में विशिषà¥à¤Ÿ बनाता है। जहॉं अनà¥à¤¯ कवि सपà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ कविता बनाने का उदà¥à¤¯à¥‹à¤— करते दीखते हैं वहॉं à¤à¤¾à¤µà¥à¤• घनानंद को कविता ही बनाती चलती है– “लोग हैं लागि कवितà¥à¤¤ बनावत मोहि तो मेरे कवितà¥à¤¤ बना बत।” à¤à¤¾à¤µ की मारà¥à¤®à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ à¤à¤¾à¤·à¤¾ को à¤à¥€ मधà¥à¤°à¤¤à¤¾ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करती चलती है। बà¥à¤°à¤œà¤à¤¾à¤·à¤¾ का सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— उनके कवितसवैयों में हà¥à¤† है।
How to cite this article:
डॉ. विजय कà¥à¤®à¤¾à¤°. रूप रस के कवि घनानंद. Int J Appl Res 2021;7(1):479-483.