मानव आहार तथा उचित आहार की अवधारणा
मानव आहार तथा उचित आहार की अवधारणा
Author(s)
कंचन राज
Abstract
शरीर का पोषण करनेवाने पदारà¥à¤¥ à¤à¥‹à¤œà¤¨ कहलाते है। à¤à¥‹à¤œà¤¨ से शरीर बनता है, पनपता है, परिपकà¥à¤µ होता है और परिवरà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤¤ होकर सà¥à¤¡à¥Œà¤² और सà¥à¤—ठित होता है। उचित à¤à¥‹à¤œà¤¨ से शरीर का सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ बना रहता है। पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ ने जीवों को अनेक à¤à¤¸à¥‡ पदारà¥à¤¥ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ किठहैं जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वे à¤à¥‹à¤œà¤¨ के रूप में गà¥à¤°à¤¹à¤£ करते हैं। ये सà¤à¥€ à¤à¥‹à¤œà¥à¤¯ पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ (Food ) की शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ में आते हैं। इनकी संरचना और संगठन में पोषक ततà¥à¤¤à¥à¤µ (Nutrients) होते हैं। शरीर को इन पोषक ततà¥à¤¤à¥à¤µà¥‹à¥‡à¤‚ की निरंतर जरूरत रहती है। शरीर, सोते-जागते; हर समय कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤¶à¥€à¤² रहता है। जब बाहà¥à¤¯ रूप से शरीर कोई à¤à¥€ काम नहीं करता दिखाई देता है, तब à¤à¥€ वह काम करता रहता है। शरीर के कà¥à¤› à¤à¥€à¤¤à¤°à¥€ अंग उस समय à¤à¥€ अपना काम करते रहते हैं, जब शरीर बाहà¥à¤¯ रूप से पूरà¥à¤£à¤¤à¤ƒ निषà¥à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯ रहता है। ये सब काम जनà¥à¤® के पूरà¥à¤µ से शà¥à¤°à¥‚ हो जाते हैं और जीवनपरà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ चलते हैं। अतः इनके लिठà¤à¥€ जरूरी मातà¥à¤°à¤¾ में ऊरà¥à¤œà¤¾ और सà¤à¥€ पोषक ततà¥à¤¤à¥à¤µà¥‹à¤‚ की, जीवनपरà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ आपूरà¥à¤¤à¤¿ होते रहना जरूरी है। शरीर, जिन बाहरी कामों को करता है, वे हलà¥à¤•à¥€ पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के à¤à¥€ हो सकते हैं या à¤à¤¾à¤°à¥€ किसà¥à¤® के à¤à¥€ हो सकते हैं। पेंटिंग से लेकर पतà¥à¤¥à¤° तोड़ने तक, सà¤à¥€ कामों के लिठकमोवेष मातà¥à¤°à¤¾ में, ऊरà¥à¤œà¤¾ और पोषक ततà¥à¤¤à¥à¤µà¥‹à¤‚ की जरूरत होती है। बाहà¥à¤¯ और à¤à¥€à¤¤à¤°à¥€ सà¤à¥€ कामों में ऊरà¥à¤œà¤¾ का वà¥à¤¯à¤¯ होता है। सेलों में निरà¥à¤®à¤¾à¤£ à¤à¤µà¤‚ टूट-फूट होती रहती है, इन कà¥à¤·à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की तà¥à¤°à¤¨à¥à¤¤ à¤à¤°à¤ªà¤¾à¤ˆ होना जरूरी है अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ शरीर को वैसी हालत में काम करना पड़ेगा, जबकी वह काम करने लायक नहीं होगा। à¤à¤¸à¥‡ में शरीर के अंगों पर à¤à¤¾à¤°à¥€ बोठपड़ता है और शरीर शकà¥à¤¤à¤¿à¤¹à¥€à¤¨ होकर असà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ हो जाता है। शरीर जवाब दे जाता है और निढाल पड़ जाता है। जो अंग सबसे अधिक बोठका शिकार होते हैं, उनकी कारà¥à¤¯-कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾à¤“ं की तो, अपूरà¥à¤£à¥€à¤¯ कà¥à¤·à¤¤à¤¿ हो जाती है। शरीर रोगी हो जाता है और घिसट-घिसट कर जीवन की घड़ियाठपूरी करनी पड़ती है। à¤à¤¸à¥€ हालत आ जाने को ही रोगावसà¥à¤¥à¤¾ कहा जाता है। रोग, शरीर के किसी अंग को à¤à¥€ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ कर सकते हैं। सामानà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ की अवसà¥à¤¥à¤¾ में, à¤à¥‹à¤œà¤¨ से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤, जो पोषक ततà¥à¤¤à¥à¤µ, शरीर के लिठअनिवारà¥à¤¯ होते हैं, वही रोग से पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ अंग के लिठहानिपà¥à¤°à¤¦ सिदà¥à¤§ हो जा सकते हैं। इसीलिठà¤à¤¸à¥€ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में, सामानà¥à¤¯ à¤à¥‹à¤œà¤¨ में परिवरà¥à¤¤à¤¨ लाना जरूरी हो जाता है। रोगावसà¥à¤¥à¤¾ के लिठऊरà¥à¤œà¤¾ और पोषक ततà¥à¤¤à¥à¤µà¥‹à¤‚ समà¥à¤¬à¤¨à¤§à¥€ आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ में à¤à¥€ अनà¥à¤¤à¤° आ जाता है, फलतः à¤à¥‹à¤œà¤¨ का तदनà¥à¤°à¥‚प चयन और पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किठजाने का अतà¥à¤¯à¤¾à¤§à¤¿à¤• महतà¥à¤¤à¥à¤µ है जिससे रोग बà¥à¤¨à¥‡ नहीं पाठऔर वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ पà¥à¤¨à¤ƒ सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯à¤²à¤¾à¤ कर सके।
How to cite this article:
कंचन राज. मानव आहार तथा उचित आहार की अवधारणा. Int J Appl Res 2021;7(10):289-292.