Vol. 7, Issue 3, Part A (2021)
भारतीय नाट्यशास्त्र के प्रणेता आचार्य भरतमुनि और उनका नाट्यशास्त्र
भारतीय नाट्यशास्त्र के प्रणेता आचार्य भरतमुनि और उनका नाट्यशास्त्र
Author(s)
रोशन कुमार
Abstractनाट्य कला पर प्राचीन भारतीय ग्रंथ
‘नाट्यशास्त्र
’ है जो अपनी विचारों की व्यापकता के साथ
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साथ समग्रता से परिपूर्ण है। इस पुस्तक में न केवल नाट्य-कला पर विचार किया गया है बल्कि उसके आनुषांगिक विषयों जैसे काव्य, संगीत, नृत्य, शिल्प तथा अन्य ललित कलाओं पर भी विचार किया गया है। वर्तमान में उपलब्ध नाट्यशास्त्र में छत्तीस अध्याय तथा छह हजार श्लोक है।
पहले अध्याय में इस ग्रंथ की उत्पति कैसे हुई का वर्णन है। दूसरे अध्याय में नाट्यशालाएं बनाने की विधियों का वर्णन है। तीसरे अध्याय में रंगमंच के पैंत्तालीस देवताओं की चर्चा है। चौथे अध्याय का संबंध नृत्य शिक्षा से है। पाँचवे अध्याय में पूर्वरंग के विधान का विस्तार से विवेचन किया है। छठवें अध्याय में रस की चर्चा की गई है। सातवें अध्याय में भावों की चर्चा की गई है। आठवें से सत्ताईसवें अध्याय तक अभिनय तथा उससे संबंधित बातों का वर्णन होता है। अट्ठाईसवें से चौतीसवें अध्याय तक संगीतशास्त्र के विषय में वर्णन किया गया है। पैंतीसवें अध्याय में मंच पर सामने तथा नेपथ्य में कार्य करने वाले का वर्णन है। छत्तीसवाँ अध्याय अंतिम अध्याय है।
How to cite this article:
रोशन कुमार. भारतीय नाट्यशास्त्र के प्रणेता आचार्य भरतमुनि और उनका नाट्यशास्त्र. Int J Appl Res 2021;7(3):01-06.