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International Journal of Applied Research
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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 7, Issue 3, Part G (2021)

सिनेमा का विकास: युग-यथार्थ के संदर्भ में

सिनेमा का विकास: युग-यथार्थ के संदर्भ में

Author(s)
डॉ. नवाब सिंह
Abstract
हिन्दी में ‘सिनेमा‘ शब्द के अनेक रूप मिलते हैं, जैसे- फिल्म, टाॅकिज, थियेटर, बायस्कोप, पिक्चर, मूवी, आदि। सिनेमा कला और विज्ञान का ऐसा सबसे बेहतरीन अनूठा मिश्रण है जिसने एक अद्भुत कलारूप को स्थापित किया है। ऐसी प्रभावशाली सशक्त कला 19वीं शताब्दी से पूर्व विकसित नहीं हो सकती थी। सिनेमा का आविष्कार निरा संयोग नहीं है। इसके पीछे पुनर्जागरण, पूंजीवाद, राष्ट्रवाद, जनवाद और समाजवाद की एक लम्बी क्रांतिकारी विरासत है। फिल्मकोश में ‘सिनेमा‘ शब्द को सामूहिक क्रियाओं की समग्रता में देखा जाता है। ‘क्रिश्चियन मैटज‘ के अनुसार ‘‘फिल्म-निर्माण, फिल्म वितरण, फिल्म प्रदर्शन और फिल्म देखने की समग्र प्रक्रिया को सिनेमा नाम से अभिहित किया गया है। दर्शक के सामने पूरी फिल्म आती है उसे ही वह समग्रता में अनुभव करता है और फिल्म की पूरी प्रक्रिया से अनभिज्ञ रहता है।‘‘1 सिनेमा (कला-विज्ञान मिश्रित) संचार माध्यम की ऐसी विशिष्ट और सर्वोŸà¤¾à¤® कला है जिसमें कला माध्यमों के अनेक रूपों का सन्निवेश होता है जैसे - लेखन, अभिनय, नाटय, संगीत, नृत्य, शिल्प, निर्देशन, फोटोग्राफी आदि के साथ साथ तकनीकी ज्ञान विज्ञान का भी समावेश इस सिनेमा कला में होता है। अर्थात् सिनेमा के अन्तर्गत लेखन कथा, दृश्य, अभिकल्पना, मंच, निर्देशन, संगीत, चित्रकला, वास्तुकला, रूप सज्जा का जितना महत्व है उतना ही प्रकाश विज्ञान, इलेक्ट्रोनिक्स, भौतिकी, रसायन विज्ञान आदि टेक्नोलाॅजी का भी विशेष योगदान है। सिनेमा कला और विज्ञान, कल्पना और यंत्र, व्यक्ति और समष्टि के संयोग-समायोजन से विकसित ऐसी विशिष्ट कला है जिसमें समाज की कला-यात्रा का हर आयाम समन्वित हो गया है। कला का ऐसा कौन सा रूप है जो सिनेमा में शामिल नहीं है।
Pages: 475-481  |  202 Views  79 Downloads


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How to cite this article:
डॉ. नवाब सिंह. सिनेमा का विकास: युग-यथार्थ के संदर्भ में. Int J Appl Res 2021;7(3):475-481.
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