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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 7, Issue 4, Part F (2021)

शेष यात्रा उपन्यास में अस्तित्व की कशमकश

शेष यात्रा उपन्यास में अस्तित्व की कशमकश

Author(s)
गुरजीत कौर
Abstract
अस्तित्ववाद पाश्चात्य जगत की देन है। यह एक ऐसा दर्शन है जो मनुष्य के अस्तित्व को महत्व देता है। अस्तित्ववादी विचारकों की दो विचारधाराएं सामने आती हैं। एक विचारधारा आस्तिक अस्तित्ववादियों की है। ये ईश्वरवादी दार्शनिक अपनी आत्मा के भीतर ईश्वरीय सत्ता का अनुभव करते हैं एवं ईश्वर को मनुष्य पर हावी भी नहीं होने देते। कीर्केगार्द, जैस्पर्स और मार्शल आस्तिक अस्तित्ववादियों में से प्रमुख हैं। नास्तिक अस्तित्ववादी दार्शनिकों में ज्याँ पाल सात्र्र, फ्रेडरिक नीत्शे और मार्टिन हीडेगर प्रमुख रूप से ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास न रखने वाले दार्शनिक हैं। नीत्शे तो ईश्वर के मरने की घोषणा करते हैं। हीडेगर ने तो यह तक कह दिया कि ईश्वर द्वारा मनुष्य इस संसार में फेंक दिया गया है। अब उसको स्वयं अपने कार्यों का चुनाव करना है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी अलग पहचान एवं अपना अस्तित्व चाहता है। समाज में रहते हुए वह अपने अस्तित्व को निखारना चाहता है लेकिन कई बार परिस्थितियाँ ऐसी हो जाती हैं कि वह अपनी अभिव्यक्ति के लिए उचित वातावरण नहीं पाता। तब अपनी प्रतिकूल परिस्थितियों को सुधारने हेतु वह हरसंभव प्रयास करने शुरू कर देता है। निरन्तर संघर्षरत रहकर वह हालातों को अनुकूल करने की कोशिश करता है एवं उचित वातावरण न मिलने पर भी अपने निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति कर लेता है। अस्तित्ववादी दार्शनिकों का मानना है कि व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है। उसको किसी दूसरे पर आश्रित रहने की आवश्यकता नहीं है। उषा प्रियंवदा ने मानवीय संवेदनाओं को सामने लाने का भरसक प्रयास किया है। उषा प्रियंवदा के शेष यात्रा उपन्यास में मानव के संघर्षशील जीवन, संत्रास, कुंठा, अनास्था आदि की अभिव्यक्ति हुई है। आधुनिक काल में मानव स्वार्थपरकता के कारण ही अजनबीपन का शिकार हो गया है। अकेलापन, ऊब, संत्रास, कुंठा, अनास्था, स्वतंत्रता, अजनबीपन आदि अस्तित्ववाद की सभी विशेषताएँ शेष यात्रा में देखने को मिलती हैं।
Pages: 373-376  |  2115 Views  1543 Downloads
How to cite this article:
गुरजीत कौर. शेष यात्रा उपन्यास में अस्तित्व की कशमकश. Int J Appl Res 2021;7(4):373-376.
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