Abstractगंगा को हिनà¥à¤¦à¥‚ धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में नदी की अपेकà¥à¤·à¤¾ à¤à¤• देवी के रूप में वरà¥à¤£à¤¿à¤¤ किया गया है साथ ही जीवनदायिनी à¤à¤µà¤‚ मोकà¥à¤·à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤¨à¥€ के रूप में पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤°à¥‚पित किया गया है। गंगा नदी के साथ अनेक पौराणिक कथायें जà¥à¤¡à¥€ हà¥à¤ˆ है इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ पौराणिक कथाओं के कारण गंगा को विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ 108 नामों से जाना जाता है। कालीदास, तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸, वालà¥à¤®à¤¿à¤•à¥€, वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ रचित महाकावà¥à¤¯à¥‹à¤‚, कविताओं से अनà¥à¤ªà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤¤ गंगा नदी पर पौराणिक, साहितà¥à¤¯, वेदोंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤, कथा, महाकावà¥à¤¯, लोकोकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ à¤à¥€ सà¥à¤¶à¥‹à¤à¤¿à¤¤ हैं।
à¤à¤¾à¤°à¤¤à¤µà¤¾à¤¸à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिये विशेषकर हिनà¥à¤¦à¥à¤“ं के लिये गंगा सिरà¥à¤« à¤à¤• नदी ही नहीं बलà¥à¤•à¤¿ à¤à¤• माà¤, à¤à¤• देवी, à¤à¤• परमà¥à¤ªà¤°à¤¾, à¤à¤• संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ और à¤à¥€ बहà¥à¤¤ कà¥à¤› है, पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• हिनà¥à¤¦à¥‚ धरà¥à¤®à¤¾à¤®à¥à¤¬à¤²à¥€ यह पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤¾à¤¶à¤¾ रखता है कि जीवनकाल में कम से कम à¤à¤• बार गंगा सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ अवशà¥à¤¯ करंे तब ही उसका जीवन सफल है, धारà¥à¤®à¤¿à¤• अनà¥à¤·à¥à¤ ान समà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ करने के लिये गंगाजल का होना अनिवारà¥à¤¯ है पवितà¥à¤° गंगाजल हर हिनà¥à¤¦à¥‚ के घर के मनà¥à¤¦à¤¿à¤° में माठगंगा की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¥‚रà¥à¤¤à¤¿ के रूप सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ किया जाता है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि गंगा को माठकी तरह पूजà¥à¤¯à¤¨à¥€à¤¯à¤¾, पोषणदातà¥à¤°à¥€ इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ उपनामों से à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤°à¥‚पित किया जाता है, अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ गंगा जल से पवितà¥à¤° à¤à¤µà¤‚ अपवितà¥à¤°à¤¤à¤¾ से मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¥€ सà¤à¥€ कृतà¥à¤¯ समà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ किये जाते है। समà¥à¤à¤µà¤¤à¤ƒ इसी कारण इस महानदी को पà¥à¤°à¤¦à¥‚षण मà¥à¤•à¥à¤¤ रखने के लिये सबसे अधिक धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ दिया जा रहा है। गंगाजलादि पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• साधनों की शà¥à¤šà¤¿à¤¤à¤¾, सà¥à¤µà¤šà¥à¤›à¤¤à¤¾ पर मानवीय काया ही नहीं बलà¥à¤•à¤¿ उसके मन, बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ à¤à¤µà¤‚ अहंकार की पवितà¥à¤°à¤¤à¤¾ à¤à¥€ निरà¥à¤à¤° करती है, जल चाहे à¤à¥‚तल पर हो या à¤à¥‚-गरà¥à¤ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ उसके पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• सà¥à¤µà¤°à¥‚प में किसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° का हसà¥à¤¤à¤•à¥à¤·à¥‡à¤ª समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के जीव जनà¥à¤¤à¥à¤“ं à¤à¤µà¤‚ वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिये संकटापनà¥à¤¨ हो सकता है। यही कारण है आज जनमानस में पौराणिक à¤à¤µà¤‚ परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£à¥€à¤¯ चेतना को कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤µà¤¿à¤¤ करने की अति आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ है।