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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 8, Issue 2, Part A (2022)

बुद्धवचन के संरक्षण में बौद्ध-संगीति का महत्त्व : एक विमर्श

बुद्धवचन के संरक्षण में बौद्ध-संगीति का महत्त्व : एक विमर्श

Author(s)
सत्येंद्र कुमार पाण्डेय
Abstract
बौद्ध-धर्म के इतिहास में बौद्ध-संगीति का महत्त्वपूर्ण स्थान है। संप्रति त्रिपिटक के रूप में उपलब्ध बुद्ध की शिक्षाओं का संग्रह उन विभिन्न संगीतियों का परिणाम है, जिनका आयोजन बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पश्चात उनके शिष्यों ने समय समय पर किया। बुद्ध के 45 वर्षों की चारिका के क्रम में उनके एवं सारिपुत्त, महाकस्सप आदि जैसे उनके तत्कालीन प्रमुख शिष्यों के द्वारा प्रज्ञप्त यत्र-तत्र प्रकीर्ण उपदेशों को प्रामाणिक रूप में संकलित एवं संरक्षित करने के निमित्त संगीति (बौद्ध-सम्मेलन) आयोजित करने की जिस प्रक्रिया का प्रारम्भ राजगृह से हुआ, वह कमोवेश म्यांमार (बर्मा) स्थित यांगोन (रंगून) की संगीति तक चलती रही। वस्तुतः मौर्य सम्राट अशोक के द्वारा तृतीय बौद्ध-संगीति के निर्णयों के पश्चात जिन-जिन देशों में बौद्ध-धर्म का प्रचार-प्रसार हुआ उन उन देशों में तात्कालिक आवश्यकताओं के अनुरूप बुद्ध-वचन की प्रामाणिकता को सुरक्षित एवं अक्षुण्ण बनाए रखने तथा बौद्ध-संघ की परिशुद्धि को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से संगीतियों का आयोजन किया जाता रहा। बौद्ध-धर्म को अंगीकार करनेवाले विभिन्न देशों अनेक संगीतियों का आयोजन हुआ जिनमें से छः संगीतियों (भारत में आयोजित प्रथम तीन संगीतियां, श्रीलंका में आयोजित एक संगीति एवं म्यांमार में आयोजित दो संगीतियां) अत्यंत महत्त्वपूर्ण है; क्योंकि उन संगीतियों ने बौद्ध-धर्म के मौलिक सिद्धांतों को त्रिपिटक एवं उससे सम्बद्ध साहित्य (अट्ठकथा, टीका आदि) के रूप में संकलित एवं संरक्षित कर बौद्ध-धर्म की सत्यता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इस पृष्ठभूमि में प्रस्तुत पत्र का प्रतिपाद्य विषय है :- बुद्धवचन के संरक्षण एवं बुद्ध-शासन के प्रचार-प्रसार में छः संगीतियों के प्रभाव का विश्लेषण करना।
Pages: 27-34  |  676 Views  351 Downloads
How to cite this article:
सत्येंद्र कुमार पाण्डेय. बुद्धवचन के संरक्षण में बौद्ध-संगीति का महत्त्व : एक विमर्श. Int J Appl Res 2022;8(2):27-34.
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