Vol. 8, Issue 2, Part H (2022)
आठवें दशक की हिन्दी कहानी में जीवन-बोध
आठवें दशक की हिन्दी कहानी में जीवन-बोध
Author(s)
डाॅ. नवाब सिंह
Abstract
साहितà¥à¤¯ की मूल सारà¥à¤¥à¤•à¤¤à¤¾ मनà¥à¤·à¥à¤¯-जीवन की अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ में है। जीवन के विविध रूपों और रंगों को उसकी समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ कमियों और विशिषà¥à¤Ÿà¤¤à¤¾à¤“ं के साथ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ करना साहितà¥à¤¯ का लकà¥à¤·à¥à¤¯ होता है। निरंतर गतिशील और परिवरà¥à¤¤à¤¨à¤¶à¥€à¤² परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से जीवन à¤à¥€ सतत गतिशील और परिवरà¥à¤¤à¤¨à¤¶à¥€à¤² होता है। जीवन के निरंतर गतिशील और बदलाव से मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में à¤à¥€ बदलाव होता है। इन मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के बदलने से संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ में बदलाव आता है। संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के बदलने से समाज à¤à¥€ गतिशील हो जाता है। इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° परिवरà¥à¤¤à¤¨ और गतिशीलता की चकà¥à¤°-पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ निरंतर जारी रहती है। साहितà¥à¤¯ à¤à¥€ अपने कथà¥à¤¯ और रूप के सà¥à¤¤à¤° पर हर काल में इस परिवरà¥à¤¤à¤¨ और विकास के à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• कà¥à¤°à¤® में निरंतर गतिमान रहता है। à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• विकास कà¥à¤°à¤® में मानवीय संवेदनाà¤à¤‚ à¤à¥€ जटिल से जटिलतर होती जाती है। इन जटिलतर मानवीय संवेदनाओं को उसकी समगà¥à¤° पà¥à¤°à¤¾à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ और वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤•à¤¤à¤¾ में पकड़ने और पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ करने में रचनाकरà¥à¤® à¤à¥€ उतना ही कठिन और जटिल हो जाता है। आठवें दशक की हिनà¥à¤¦à¥€ कहानी इस जटिल जीवन-बोध को पकड़ने के संघरà¥à¤· में समरà¥à¤¥ और सफल दिखाई देती है।
How to cite this article:
डाॅ. नवाब सिंह. आठवें दशक की हिन्दी कहानी में जीवन-बोध. Int J Appl Res 2022;8(2):601-606.