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Vol. 8, Issue 2, Part H (2022)

दिवाकर की कहानियों में वृद्धों की स्थिति के बदलते सामाजिक परिप्रेक्ष्य

दिवाकर की कहानियों में वृद्धों की स्थिति के बदलते सामाजिक परिप्रेक्ष्य

Author(s)
डॉ. बलराम कुमार
Abstract
21वीं सदी की दुनिया जिन चुनौतियों और समस्याओं का सामना कर रही हैं, उनमें तेजी से बढ़ती हुई वृद्धों की जनसंख्या से उत्पन्न समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है। संयुक्त परिवार जैसे-तैसे टूटते गए, बुजुर्गों की स्थिति भी दयनीय होती चली गई। हम यह समझ गए की इनके बिना हमारे जीवन का कोई आधार नही है। वृद्ध-जन संपूर्ण समाज के लिए, अतीत के लिए अनुभवों के भंडार तथा सभी के श्रद्धा के पात्र हैं। समाज मे यदि उपयुक्त सम्मान मिले और उनके अनुभवों का लाभ उठायाजाय तो वे हमारी प्रगति में काफी भागीदारी भी कर सकते हैं। चिंता केवल इस बात की होनी चाहिए कि वें स्वस्थ, सुखी और सदैव सक्रिय रहें। यहाँ भीष्म साहनी की एक कहानी ‘‘चीफ की दावत’’ याद आती है। इस कहानी मे जहाँ बेटे ने अपने बॉस को घर बुलाने से पहले ही बूढ़ी माँ को कैद कर लिया था,पर आते-जाते बॉस माँ से टकरा ही गया और वह भावनात्मक पल.
Pages: 591-593  |  242 Views  58 Downloads
How to cite this article:
डॉ. बलराम कुमार. दिवाकर की कहानियों में वृद्धों की स्थिति के बदलते सामाजिक परिप्रेक्ष्य. Int J Appl Res 2022;8(2):591-593.
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