Vol. 8, Issue 6, Part H (2022)
à¤à¤¾à¤°à¤¤ में पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥€ शिकà¥à¤·à¤¾ और उसका पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ
à¤à¤¾à¤°à¤¤ में पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥€ शिकà¥à¤·à¤¾ और उसका पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ
Author(s)
राम नरेश महतो
Abstractशिकà¥à¤·à¤¾ के महतà¥à¤¤à¤¾ से सà¤à¥€ परिचित है। अलस में शिकà¥à¤·à¤¾ मनà¥à¤·à¥à¤¯ को पशà¥à¤•à¥à¤¤ जीवन से ऊपर उठानेवाली पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ है। जिस तरह से पशà¥à¤“ं को सही या गलत का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ नहीं होता है उसी तरह की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ अशिकà¥à¤·à¤¿à¤¤ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की होती हैं। वे à¤à¥€ पशà¥à¤¤à¥à¤²à¥à¤¯ ही होते हैं बिना शिकà¥à¤·à¤¾ के पर जà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¥€à¤‚ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ का पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ होता है। तà¥à¤¯à¥‹à¤‚ही उनके मसà¥à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤• चकà¥à¤·à¥ खà¥à¤² जाते हैं। शिकà¥à¤·à¤¾ मनà¥à¤·à¥à¤¯ के अंदर अचà¥à¤›à¥‹ विचारों को अंकà¥à¤°à¤¿à¤¤ करती है और बà¥à¤°à¥‡ विचारों के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ विरकà¥à¤¤à¤¿ पैदा करती हैं। कहने का अà¤à¤¿à¤ªà¥à¤°à¤¾à¤¯ यह है कि शिकà¥à¤·à¤¾ का मूल अरà¥à¤¥ यही है कि वह वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ का उचित मारà¥à¤—दरà¥à¤¶à¤¨ कर उसे बेहतर तरीके से जीवन वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ करे योगà¥à¤¯ बनता है। शिकà¥à¤·à¤¿à¤¤ मनà¥à¤·à¥à¤¯ के à¤à¥€à¤¤à¤° समाज में पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ित कारà¥à¤¯ करने की पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होती हैं और मनà¥à¤·à¥à¤¯à¤¤à¤¾-à¤à¤¾à¤µ उदित होता है।
How to cite this article:
राम नरेश महतो. à¤à¤¾à¤°à¤¤ में पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥€ शिकà¥à¤·à¤¾ और उसका पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ. Int J Appl Res 2022;8(6):616-618.