Vol. 8, Issue 9, Part D (2022)
कला और धर्म
कला और धर्म
Author(s)
डाॅ. रंजना ग्रोवर
Abstract
व्यष्टि और समष्टि, दोनों का सुन्दर योग उत्तम समन्वय समाज कहलाता है। दोनो की पृथक न तो सत्ता रहती है और न आहितत्व ही। ये दोनों मिलकर ऐसी जीवनचर्या बनाते हैं, दैनिक क्रिया-कलाप निश्चित करते है, जिससे दोनों का मंगल भी होता है और विकास भी। जीवन निर्माण के इस समूचे क्रिया-कलाप में मनोरंजन का स्थान स्वयम् ही बन जाता है। दिन भर के घोर परिश्रम के पश्चात् जब मानव की बुद्धि थक जाती है, मन कलान्त हो जाता है, तब तरोताजा होने के लिए आवश्यकता पड़ती है किसी ऐसे माध्यम की जो मन और मस्तिष्क फिर से जीवन निर्माण में जुट जाने क्षमता प्रदान करे। अपनी इन्हीें आवश्यकताओं के मानव और समाज ने मिलकर जो अविष्कार किये उन्हें कलाएं कहते हैं। अतः कलाओं के विविध रूप हैं। जिनमें से पाँच ललित कलाएं है और अन्य उपयोगी कलाएं है। मनुष्य के सामाजिक जीवन के साथ-2 उसकी आध्यात्मिक मान्याताओं के विकास में भी इन कलाओं का योगदान होना सम्भव हीं नहीं अपितु अनिवार्य बन जाता है।
How to cite this article:
डाॅ. रंजना ग्रोवर. कला और धर्म. Int J Appl Res 2022;8(9):239-241.