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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 9, Issue 2, Part E (2023)

गांधीजी की सामाजिक परिकल्पना और आज का समाज

गांधीजी की सामाजिक परिकल्पना और आज का समाज

Author(s)
डॉ. वर्चसा सैनी
Abstract
भारतीय लोकजीवन में गांधीजी का प्रवेश इस युग की सबसे महत्वपूर्ण घटना है। वह हमारे जीवन में प्रकाशपुंज के रूप में आये और आने के साथ ही उन्होंने हमें उस विराट नैतिक स्वरूप का दर्शन कराया जिसे हम भूल गये थे। उन्होंने समाज में फैली अराजकता एवं बुराइयों को दूर करके मानव के हृदय में आत्मविश्वास एवं साहस को जगाया।
भारतीय राजनीति में गांधी के पदार्पण के पूर्व के दिनों में मुख्यतः जो दो विचारधाराओं का प्रचलन था, उनमें एक सामाजिक सुधार की पक्षपाती थी तो दुसरी यह दलील रखती थी कि औपनिवेशिक शासन ही मुख्य दुश्मन है और इसकी समाप्ति के बाद सामाजिक सुधार स्वयं स्वरूप ग्रहण कर लेगा। गांधी ने इन दोनों विचारधाराओं को एक साथ लेकर प्रस्थान किया- आजादी की लड़ाई का नेतृत्व संभला तथा सामाजिक सुधार कार्य के रूप में अस्पृश्यता मिटाने का संघर्ष भी शुरू किया। दुसरी तरफ, जहाँ धार्मिक पुनरुत्थानवादी हिन्द यथास्थिति को परम्परा के नाम पर कायम रखना चाहतें थे, वहीं प्रबुद्ध जन ब्राह्मण संस्कृति के विरोध में उपद्रवी रूख अपना रहें थे, ऐसी स्थिति में गांधी ने कहा कि हिन्दु धर्म अस्पृश्यता को नहीं मानता और इस परस्पर विरोध का समाधान अछुतों को बराबरी का दर्जा देकर तथा हिन्दु-हृदय को उनके प्रति सदभाव में परिवर्तित कर ही किया जा सकता है। सन् 1920 ई० ओर 1921 के कांग्रेस के अधिवेशनों में जिसमें असहयोग आन्दोलन शुरू करने का निर्णय लिया गया, प्रस्ताव पारित कर यह दर्शाया गया कि प्रत्येक सत्याग्रही अस्पृश्यता के खिलाफ न सिर्फ संघर्ष करेगा, बल्कि अछूतों से सम्पर्क रख उनकी यथासंभव मदद करेगा। गांधी ने अस्पृश्यता उन्मूलन को राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन का अन्योन्यश्रय अंग बनाया तथा स्वाधीनता संग्राम के सेनानियों के लिए यह ऐसा महत्वपूर्ण कर्तव्य बनाया, जिसे अखिल भारतीय पैमाने पर स्वीकृति मिली।
Pages: 343-346  |  237 Views  62 Downloads
How to cite this article:
डॉ. वर्चसा सैनी. गांधीजी की सामाजिक परिकल्पना और आज का समाज. Int J Appl Res 2023;9(2):343-346.
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