Vol. 9, Issue 4, Part B (2023)
बसà¥à¤¤à¤° की ढोकरा हसà¥à¤¤à¤•à¤²à¤¾: छतà¥à¤¤à¥€à¤¸à¤—ॠके आदिवासियों की परंपरागत कला
बसà¥à¤¤à¤° की ढोकरा हसà¥à¤¤à¤•à¤²à¤¾: छतà¥à¤¤à¥€à¤¸à¤—ॠके आदिवासियों की परंपरागत कला
Author(s)
डाॅ. सविता वरà¥à¤®à¤¾
Abstractबसà¥à¤¤à¤° अंचल के हसà¥à¤¤à¤¶à¤¿à¤²à¥à¤ª, चाहे वे आदिवासी हसà¥à¤¤à¤¶à¤¿à¤²à¥à¤ª हों या लोक हसà¥à¤¤à¤¶à¤¿à¤²à¥à¤ª, दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾-à¤à¤° के कलापà¥à¤°à¥‡à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ आकृषà¥à¤Ÿ करने में सकà¥à¤·à¤® रहे हैं। इसका मà¥à¤–à¥à¤¯ कारण यह है कि इनमे इस आदिवासी बाहà¥à¤² अंचल की आदिम संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ की सोंधी महक बसी रही है। यह शिलà¥à¤ª-परंपरा और उसकी तकनीक बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ है। ढोकरा कला à¤à¤• खोई हà¥à¤ˆ मोम की ढलाई धातॠकला है जो पीतल की मूरà¥à¤¤à¤¿ बनाने के लिठ4000 साल पहले की मोम ढलाई तकनीक का उपयोग करती है। यह पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ कला सिंधॠघाटी सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ में उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ˆ और पशà¥à¤šà¤¿à¤® बंगाल तक फैल गई जहां लंबे समय तक जनजातियों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ इसका अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ किया गया और जो सदियों से à¤à¤¾à¤°à¤–ंड, ओडिशा, छतà¥à¤¤à¥€à¤¸à¤—ॠके साथ-साथ केरल और राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ जैसे राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में चली गईं और आधà¥à¤¨à¤¿à¤• पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ के बड़े हिसà¥à¤¸à¥‡ में फली-फूली। इस कला की सबसे पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ रचनाठजिसे ढोकरा कहा जाता हैठसिंधॠघाटी सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ के केंदà¥à¤° मोहनजोदारो से à¤à¥€ संबंधित है, यह à¤à¤• कला है जो संगà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤•à¥‹à¤‚ के साथ-साथ रचनाकारों को सिंधॠघाटी सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ से जोड़ती है।
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डाॅ. सविता वरà¥à¤®à¤¾. बसà¥à¤¤à¤° की ढोकरा हसà¥à¤¤à¤•à¤²à¤¾: छतà¥à¤¤à¥€à¤¸à¤—ॠके आदिवासियों की परंपरागत कला. Int J Appl Res 2023;9(4):114-117.