Vol. 9, Issue 4, Part C (2023)
पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ इतिहास की साकà¥à¤·à¥€ नरà¥à¤®à¤¦à¤¾
पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ इतिहास की साकà¥à¤·à¥€ नरà¥à¤®à¤¦à¤¾
Author(s)
अपराजिता मिशà¥à¤°à¤¾, डाॅ. महेनà¥à¤¦à¥à¤° मणि दà¥à¤µà¤¿à¤µà¥‡à¤¦à¥€
Abstractपà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ धरà¥à¤® गà¥à¤°à¤‚थ पà¥à¤°à¤¾à¤£ नरà¥à¤®à¤¦à¤¾ को कई कलà¥à¤ªà¥‹à¤‚ की साकà¥à¤·à¥€1 बताते हैं, कलà¥à¤ªà¤¾à¤‚त सà¥à¤¥à¤¾à¤ˆà¤¨à¥€ बताते हैं। इस मत के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° नरà¥à¤®à¤¦à¤¾ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के नवनिरà¥à¤®à¤¾à¤£ के पूरà¥à¤µ से इस देश मे है। पà¥à¤°à¤²à¤¯ के दौरान समà¥à¤¦à¥à¤° में विचरण करती है और नई सृशà¥à¤Ÿà¤¿ की रचना के बाद पà¥à¤¨à¤ƒ à¤à¥‚लोक में अवतरित होती है। इस तरह मानव जीवन के साथ ही नरà¥à¤®à¤¦à¤¾ का अवतरण होता है। अब सवाल उठता है कि सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का सृजन कब हà¥à¤†? मानव का जनà¥à¤® कब हà¥à¤†? इतिहासकार, पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¤à¥à¤µà¤µà¥‡à¤¤à¥à¤¤à¤¾ और à¤à¥‚ वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• इस बात को लेकर लगातार अनà¥à¤¸à¤‚धानरत हैं कि पृथà¥à¤µà¥€ की और पृथà¥à¤µà¥€ पर मानव जीवन की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ कब और कैसे हà¥à¤ˆà¥¤ इस संबंध में विशà¥à¤µ à¤à¤° के अलग-अलग इतिहासकारों à¤à¤µà¤‚ वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•à¥‹à¤‚ ने अपने अलग-अलग मत दिà¤, लेकिन उनमे à¤à¤•à¤°à¥‚पता नहीं बन सकी। वरà¥à¤· 1952 में गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° में हà¥à¤ इतिहास कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ के अधिवेशन में सà¤à¤¾à¤ªà¤¤à¤¿ के रूप से अपने उदà¥à¤¬à¥‹à¤§à¤¨ के दौरान डाॅ राधाकà¥à¤®à¥à¤¦ बनरà¥à¤œà¥€ ने कहा आदि मनà¥à¤·à¥à¤¯ पंजाब और शिवाली की ऊंची à¤à¥‚मि पर विकसित हà¥à¤† होगा, इस बात के पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ मिलते हैं। डाकà¥à¤Ÿà¤° मà¥à¤–रà¥à¤œà¥€ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° मानव की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ à¤à¤¾à¤°à¤¤ में हà¥à¤ˆ और इसी देश में उसकी सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ विकसित हà¥à¤ˆà¥¤2
परवरà¥à¤¤à¥€ इतिहासकारों का मानना है कि अगर मनà¥à¤·à¥à¤¯ à¤à¤¾à¤°à¤¤ में जनà¥à¤®à¤¾ तो वह उतà¥à¤¤à¤° नहीं दकà¥à¤·à¤¿à¤£ में जनà¥à¤®à¤¾ होगा। à¤à¤¾à¤°à¤¤ की सबसे पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ धरती वह है जो विंधà¥à¤¯ परà¥à¤µà¤¤ से होती हà¥à¤ˆ दकà¥à¤·à¤¿à¤£ की ओर गई है। अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ नरà¥à¤®à¤¦à¤¾ के तट से दकà¥à¤·à¤¿à¤£ का à¤à¥‚-à¤à¤¾à¤—। ‘‘à¤à¤¾à¤—वत पà¥à¤°à¤¾à¤£ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरंठके बारे में बताता है कि दकà¥à¤·à¤¿à¤£ में दà¥à¤°à¤µà¤¿à¤£ देश के सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ राजरà¥à¤·à¤¿ सतà¥à¤¯à¤µà¥à¤°à¤¤ इस काल के वैवसà¥à¤µà¤¤ मनॠहà¥à¤à¥¤ पूरà¥à¤µ कलà¥à¤ª के अंत में हà¥à¤ महापà¥à¤°à¤²à¤¯ से बचने वाले मनॠऔर उनके परिवार से ही मनà¥à¤·à¥à¤¯ जाति उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ˆà¥¤ मनॠके दस पà¥à¤¤à¥à¤° थे, जिनमें बड़ा पà¥à¤¤à¥à¤° अरà¥à¤§à¤¨à¤¾à¤°à¥€à¤¶à¥à¤µà¤° था, इसलिठउसके दो नाम थे इल और इला। इल से सूरà¥à¤¯à¤µà¤‚श और इला से चंदà¥à¤°à¤µà¤‚श का जनà¥à¤® हà¥à¤†à¥¤’’3 à¤à¥‚गरà¥à¤à¤µà¥‡à¤¤à¥à¤¤à¤¾à¤“ं दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ किठगठअनà¥à¤¸à¤‚धान के दौरान वरà¥à¤· 1935 ईसà¥à¤µà¥€ में बड़ौदा राजà¥à¤¯ में नरà¥à¤®à¤¦à¤¾ के समीप लघॠमानव का à¤à¤• तीस इंच लंबा कंकाल मिला, जिसे वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• आदिमानव का कंकाल समà¤à¤¤à¥‡ हैं। इसके बाद 1982 में नरà¥à¤®à¤¦à¤¾ घाटी के सीहोर जिले में हथनोरा नामक सà¥à¤¥à¤² से होमोइरेकà¥à¤Ÿà¤¸ मानव की संपूरà¥à¤£ खोपड़ी मिली, जिसे परीकà¥à¤·à¤£ के उपरांत आदà¥à¤¯ होमोसेपियंस4 à¤à¤µà¤‚ चार लाख वरà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ माना गया। इसी तरह होशंगाबाद के समीप मिलेहोमोनिड मानवो के पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£, नरà¥à¤®à¤¦à¤¾ के समीप पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ गà¥à¤«à¤¾à¤“ं में उपलबà¥à¤§ शैलचितà¥à¤°, डायनासोर के अंडों के जीवाषà¥à¤®, कà¥à¤²à¥à¤¹à¤¾à¥œà¥€ à¤à¤µà¤‚ धार जिले में मिली पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¨ गहने बनाने वाली फैकà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€ जैसी तमाम चीजें नरà¥à¤®à¤¦à¤¾ घाटी से लगातार पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो रही हैं। इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¾à¤¤à¥à¤µà¤¿à¤• अनà¥à¤µà¥‡à¤·à¤£à¤¾à¤‚े से यह धारणा मजबूत होती है कि मानव का जनà¥à¤® और विकास नरà¥à¤®à¤¦à¤¾ के तट पर या नरà¥à¤®à¤¦à¤¾ के समीप हà¥à¤†à¥¤
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अपराजिता मिशà¥à¤°à¤¾, डाॅ. महेनà¥à¤¦à¥à¤° मणि दà¥à¤µà¤¿à¤µà¥‡à¤¦à¥€. पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ इतिहास की साकà¥à¤·à¥€ नरà¥à¤®à¤¦à¤¾. Int J Appl Res 2023;9(4):188-193.