Vol. 2, Issue 3, Part M (2016)
“जैन दरà¥à¤¶à¤¨ में सतà¥à¤¯ की अवधारणा”
“जैन दरà¥à¤¶à¤¨ में सतà¥à¤¯ की अवधारणा”
Author(s)
डॉ. अंजना रानी
Abstract
“सतà¥à¤¯à¤®à¥‡à¤µ जयते” मà¥à¤‚डकोपनिषद से लिया गया यह वाकà¥à¤¯ हमारे à¤à¤¾à¤°à¤¤ देश का राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ आदरà¥à¤¶ वाकà¥à¤¯ है। इसका अरà¥à¤¥ है -सतà¥à¤¯ ही जीतता है। किंतॠजीवन का अनà¥à¤à¤µ कहता है कि असतà¥à¤¯ के मारà¥à¤— से चलने वाले लोग जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ सफल होते दिखाई दे रहे हैं। धरà¥à¤® कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में à¤à¥€ असतà¥à¤¯ का बोलबाला दिखाई पड़ रहा है तो फिर राजनीति के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में और अनà¥à¤¯ सांसारिक कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में इसकी सीमा का निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤£ करना कठिन है। तो फिर à¤à¤• सवाल उठता है कि "कà¥à¤¯à¤¾ यह आदरà¥à¤¶ वाकà¥à¤¯ सिरà¥à¤« लिखने और बोलने के लिठहै?" जहां तक हमारे मनीषियों का संबंध है, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने जानकर, अनà¥à¤à¤µà¤•à¤° यह उदà¥à¤˜à¥‹à¤· किया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पाया कि सतà¥à¤¯ अवशà¥à¤¯à¤®à¥‡à¤µ पà¥à¤°à¤•à¤Ÿ होता है अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ बचता है। गीता में à¤à¥€ कहा गया कि सतà¥à¤¯ का अà¤à¤¾à¤µ नहीं हो सकता और असतà¥à¤¯ का à¤à¤¾à¤µ नहीं हो सकता। इस पृषà¥à¤ à¤à¥‚मि में देखें तो सतà¥à¤¯ ही जीतता है, इस बात में बल दिखने लगेगा। हमारी कामना à¤à¥€ यही है कि सतà¥à¤¯ ही जीतना चाहिà¤à¥¤ फिर à¤à¥€ लोग असतà¥à¤¯ में जी रहे हैं। सतà¥à¤¯ का वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° किया à¤à¥€ जाता है तो à¤à¤• साधन की तरह। इस कारण से सतà¥à¤¯ हमें मà¥à¤•à¥à¤¤ नहीं करता बलà¥à¤•à¤¿ बंधन में डालता है। अतः उस सतà¥à¤¯ को समà¤à¤¨à¥‡ के लिठविराट à¤à¤µà¤‚ सूकà¥à¤·à¥à¤® दृषà¥à¤Ÿà¤¿ चाहिà¤à¥¤ इस दिशा में यह शोध लेख à¤à¤• विनमà¥à¤° पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ है।
How to cite this article:
डॉ. अंजना रानी. “जैन दरà¥à¤¶à¤¨ में सतà¥à¤¯ की अवधारणा”. Int J Appl Res 2016;2(3):854-857.