Vol. 3, Issue 1, Part L (2017)
सिनà¥à¤§à¥ सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ कालीन शिलà¥à¤ª, उदà¥à¤¯à¥‹à¤—, वाणिजà¥à¤¯, वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° à¤à¤µà¤‚ नागरीय जीवन
सिनà¥à¤§à¥ सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ कालीन शिलà¥à¤ª, उदà¥à¤¯à¥‹à¤—, वाणिजà¥à¤¯, वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° à¤à¤µà¤‚ नागरीय जीवन
Author(s)
पूनम कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€
Abstract
सिनà¥à¤§à¥ सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ शिलà¥à¤ª तथा उदà¥à¤¯à¥‹à¤— धनà¥à¤§à¥‡ में कताई-बà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ, आà¤à¥‚षण, बरà¥à¤¤à¤¨ और औजार आदि कई वसà¥à¤¤à¥à¤“ं का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया करते थे। यातायात के लिठबैलगाड़ी और à¤à¥ˆà¤¸à¤¾à¤—ाड़ी का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— कर देश-विदेश से वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° किया करते थे। सिंधॠसà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ या हड़पà¥à¤ªà¤¾ सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ के लोग कृषि और पशà¥à¤ªà¤¾à¤²à¤¨ के साथ-साथ शिलà¥à¤ª कला तथा उदà¥à¤¯à¥‹à¤—, वाणिजà¥à¤¯, वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° में à¤à¥€ बà¥-चà¥à¤•à¤° रूचि लिया करते थे। सिनà¥à¤§à¥ घाटी सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ के हड़पà¥à¤ªà¤¾, मोहनजोदड़ो, लोथल आदि नगरों की समृदà¥à¤§à¤¿ का पà¥à¤°à¤®à¥à¤– सà¥à¤°à¥‹à¤¤ वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° और वाणिजà¥à¤¯ था। यदि वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°à¤¿à¤• संगठन की बात की जाठतो निशà¥à¤šà¤¯ ही इतनी दूर के देशों से बड़े पैमाने पर इतर कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ से वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° हेतॠअचà¥à¤›à¤¾ वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°à¤¿à¤• संगठन रहा होगा. नगरों में कचà¥à¤šà¤¾ माल आस-पड़ोस तथा सà¥à¤¦à¥‚र सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ से उपलबà¥à¤§ किया जाता था। वासà¥à¤¤à¤µ में सिनà¥à¤§à¥ घाटी सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ अपनी विशिषà¥à¤Ÿ à¤à¤µà¤‚ उनà¥à¤¨à¤¤ नगर योजना के लिठविशà¥à¤µ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इतनी उचà¥à¤šà¤•à¥‹à¤Ÿà¤¿ का “वसà¥à¤¤à¤¿ विनà¥à¤¯à¤¾à¤¸” समकालीन मेसोपोटामिया आदि जैसे अनà¥à¤¯ किसी सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ में नहीं मिलता. सिनà¥à¤§à¥ अथवा हड़पà¥à¤ªà¤¾ सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ के नगर का अà¤à¤¿à¤µà¤¿à¤¨à¥à¤¯à¤¾à¤¸ शतरंज पट की तरह होता था, जिसमें मोहनजोदड़ो की उतà¥à¤¤à¤°-दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¥€ हवाओं का लाठउठाते हà¥à¤ सड़कें करीब-करीब उतà¥à¤¤à¤° से दकà¥à¤·à¤¿à¤£ तथा पूरà¥à¤£ से पशà¥à¤šà¤¿à¤® को ओर जाती थीं। इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° चार सड़कों से घिरे आयतों में “आवासीय à¤à¤µà¤¨” तथा अनà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किये गये थे।
How to cite this article:
पूनम कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€. सिनà¥à¤§à¥ सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ कालीन शिलà¥à¤ª, उदà¥à¤¯à¥‹à¤—, वाणिजà¥à¤¯, वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° à¤à¤µà¤‚ नागरीय जीवन. Int J Appl Res 2017;3(1):1032-1034.