Vol. 3, Issue 5, Part L (2017)
संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ वांगà¥à¤®à¤¯ में परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ चेतना
संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ वांगà¥à¤®à¤¯ में परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ चेतना
Author(s)
डॉ. सरà¥à¤µà¤œà¥€à¤¤ दà¥à¤¬à¥‡
Abstract
संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ वांगà¥à¤®à¤¯ में परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ शबà¥à¤¦ नहीं है किंतॠपà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ रूपों के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ ऋषि चेतना अतà¥à¤¯à¤‚त आदर के साथ à¤à¤°à¥€ हà¥à¤ˆ थी। विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ देवों और देवियों के रूप में पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ की उपासना जिस रूप में पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ के गà¥à¤°à¤‚थों में मिलती हैठउससे पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के साथ उनके गहरे तादातà¥à¤®à¥à¤¯ और संवेदना का पता चलता है। अतःपरà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ के पà¥à¤°à¤¦à¥‚षण का कोई सवाल ही नहीं उठता था। औदà¥à¤¯à¥‹à¤—ीकरण के कारण और पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ उपेकà¥à¤·à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤£ दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¥‹à¤£ अपनाठजाने के कारण आज à¤à¤¸à¤¾ लगता है कि पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ मनà¥à¤·à¥à¤¯ से बदला ले रही हैं। यदि पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ मनà¥à¤·à¥à¤¯ का दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¥‹à¤£ समà¥à¤¯à¤•à¥ और संवेदनशील नहीं हो तो कोई à¤à¥€ सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ और संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤£ तो हो सकती है किंतॠसà¥à¤–ी नहीं।
How to cite this article:
डॉ. सरà¥à¤µà¤œà¥€à¤¤ दà¥à¤¬à¥‡. संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ वांगà¥à¤®à¤¯ में परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ चेतना. Int J Appl Res 2017;3(5):903-906.