Vol. 4, Issue 10, Part F (2018)
संत कबीर के à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ कावà¥à¤¯ में जीवनमूलà¥à¤¯
संत कबीर के à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ कावà¥à¤¯ में जीवनमूलà¥à¤¯
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सà¥à¤°à¥‡à¤¨à¥à¤¦à¥à¤° कà¥à¤®à¤¾à¤° गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾
Abstractà¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ में धरà¥à¤®, अरà¥à¤¥, काम और मोकà¥à¤· इन चार पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥‹à¤‚ की परिकलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ की गई है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ का जीवन इन चार पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥‹à¤‚ से सà¥à¤®à¥‡à¤²à¤¿à¤¤ होता है। ये चारों पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥ जीवन का à¤à¤• à¤à¤¾à¤— न होकर समय आदरà¥à¤· जीवन के साधà¥à¤¯ रूप हैं। इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ को संधानित करके मानव-जीवन अगà¥à¤°à¤¸à¤° होता है। मानवीय जीवन में नीति का à¤à¥€ अननà¥à¤¯ साधरण महतà¥à¤µ हैं। वही हमें उचित-अनà¥à¤šà¤¿à¤¤ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ देती हà¥à¤ˆ चलती है और हमारे चरितà¥à¤° को आलोकित करती है। इस नीति में ‘मानवता’ नामक ततà¥à¤µ विषेष होता है, और संत साहितà¥à¤¯ की पà¥à¤°à¤®à¥à¤– विषेषता मानवता ही है। इसका सबसे बड़ा लकà¥à¤·à¥à¤¯ है - ‘अतीत के अनà¥à¤à¤µ à¤à¤µà¤‚ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ की उचà¥à¤›à¥ƒà¤‚खलाओं à¤à¤µà¤‚ अमरà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤“ं को दूर करके मरà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ करना।’ यही मानवता कबीर के कावà¥à¤¯ का गौरव है। कबीर मानवीय जीवन को ईषà¥à¤µà¤° की अमूलà¥à¤¯ निधि मानते हैं। कबीर ने निमà¥à¤¨ नैतिक ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ से चलने का संदेष मनà¥à¤·à¥à¤¯ को दिया है जिससे उसे ईषà¥à¤µà¤° की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ यथासंà¤à¤µ हो सके।
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सà¥à¤°à¥‡à¤¨à¥à¤¦à¥à¤° कà¥à¤®à¤¾à¤° गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾. संत कबीर के à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ कावà¥à¤¯ में जीवनमूलà¥à¤¯. Int J Appl Res 2018;4(10):490-493.