Vol. 4, Issue 3, Part I (2018)
‘à¤à¤• कंठविषपायी’ में यà¥à¤—-बोध
‘à¤à¤• कंठविषपायी’ में यà¥à¤—-बोध
Author(s)
डॉ० विजय कà¥à¤®à¤¾à¤°
Abstract
दकà¥à¤·-यजà¥à¤ž विधà¥à¤µà¤‚श की पौराणिक कथा पर आधारित दà¥à¤·à¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ कà¥à¤®à¤¾à¤° का कावà¥à¤¯ नाटक ‘à¤à¤• कंठविषपायी’ यà¥à¤— चेतना और मूलà¥à¤¯ विमरà¥à¤¶ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से महतà¥à¤¤à¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ रचना है। पौराणिक रचना में आधà¥à¤¨à¤¿à¤• अरà¥à¤¥ à¤à¤°à¤¨à¥‡ का यह पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ दà¥à¤·à¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ कà¥à¤®à¤¾à¤° को यà¥à¤—चेतसॠसाहितà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤° सिदà¥à¤§ करता है। कोई à¤à¥€ रचना अपने यà¥à¤—ीन परिवेश से कटकर सफल, पà¥à¤°à¤¾à¤¸à¤‚गिक और उपयोगी नहीं हो सकी है। दकà¥à¤·-यजà¥à¤ž विधà¥à¤µà¤‚श की घटना के पीछे शिव और सती का पà¥à¤°à¥‡à¤® विवाह है। इस पà¥à¤°à¥‡à¤® विवाह से कà¥à¤ªà¤¿à¤¤ हो, बदले की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ से राजा दकà¥à¤· यजà¥à¤ž का आयोजन करते हैं। वे सà¤à¥€ देवताओं को तो आमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ करते हैं परनà¥à¤¤à¥ शिव को नहीं। सती से पति का अपमान सहा नहीं जाता है और वह यजà¥à¤ž-अगà¥à¤¨à¤¿ में कूद आतà¥à¤®à¤¦à¤¾à¤¹ कर लेती हैं। फिर कà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤§ शिव और उनके गण दकà¥à¤·-यजà¥à¤ž का विधà¥à¤µà¤‚श कर देते हैं। जब सती की सà¥à¤§à¤¿ आती है तब शिव सती के जले शव को कंधे पर रख जहाà¤-तहाठà¤à¤Ÿà¤•à¤¤à¥‡ हैं। देवताओं के लिठयह काम चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¥€ à¤à¤°à¤¾ होता है कि सती के शव को उनसे अलग कैसे किया जाय? à¤à¤—वान विषà¥à¤£à¥ की बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤®à¤¾à¤¨à¥€ काम आती है। वे अपने सà¥à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ चकà¥à¤° से शव के टà¥à¤•à¥œà¥‡-टà¥à¤•à¤¡à¥‡ कर देते हैं। इसी कथा की तीन घटनाओं– शिव-सती के पà¥à¤°à¥‡à¤® विवाह का विरोध, दकà¥à¤· दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ यजà¥à¤ž के बहाने यà¥à¤¦à¥à¤§ का आयोजन तथा शिव दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सती के शव को कंधे पर ढोना– को आधà¥à¤¨à¤¿à¤• तथा यà¥à¤—ीन संदरà¥à¤ से जोड़ा गया है। à¤à¤¾à¤°à¤¤ में विवाह à¤à¤• संसà¥à¤¥à¤¾ है जिसे सामाजिक मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है। इस संसà¥à¤¥à¤¾ के कà¥à¤› आचार हैं जिसका उलà¥à¤²à¤‚घन सामाजिक अपराध की शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ में आता है। माता-पिता की सà¥à¤µà¥€à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ आवशà¥à¤¯à¤• है, जाति-बंधन उसकी सीमा है। आधà¥à¤¨à¤¿à¤• यà¥à¤— में जाति बंधन टूटने लगा तो परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤µà¤¾à¤¦à¥€ इसे सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° नहीं कर पाये। राजा दकà¥à¤· उसी परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤µà¤¾à¤¦à¥€ की पकà¥à¤·à¤§à¤°à¤¤à¤¾ करते हैं। कवि आधà¥à¤¨à¤¿à¤• हैं और विवाह में सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤° चयन के पकà¥à¤·à¤§à¤° हैं। मानव जाति के लिठयà¥à¤¦à¥à¤§ बड़ी समसà¥à¤¯à¤¾ रही है। आदमी विचारों से आधà¥à¤¨à¤¿à¤• तो हà¥à¤† पर उसके मन से यà¥à¤¦à¥à¤§ का à¤à¥‚त नहीं निकला। दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ ने दो-दो विशà¥à¤µ यà¥à¤¦à¥à¤§à¥‹à¤‚ को देखा है। à¤à¤¾à¤°à¤¤ किसी-न-किसी रूप में इन यà¥à¤¦à¥à¤§à¥‹à¤‚ से पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ हà¥à¤† है। चीनी आकà¥à¤°à¤®à¤£ (1962) ने तो हमें à¤à¤•à¤à¥‹à¤° कर रख दिया। हमारे नेता उस समय यà¥à¤¦à¥à¤§ से हिचक रहे थे। कवि ने अपनी इस रचना ‘à¤à¤• कंठविषपायी’ में बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾-विषà¥à¤£à¥ आदि देवताओं के माधà¥à¤¯à¤® से उसी हिचक को पà¥à¤°à¤•à¤Ÿ किया है। यह à¤à¥€ संदेश दिया गया है कि यà¥à¤¦à¥à¤§ किसी समसà¥à¤¯à¤¾ का अनà¥à¤¤à¤¿à¤® हल नहीं है। अत: विवेक से काम लेना चाहिठजैसा कि à¤à¤—वान विषà¥à¤£à¥ ने शिव के साथ होने वाले संà¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ यà¥à¤¦à¥à¤§ के समय विवेक से काम लिया था।परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤µà¤¾à¤¦à¥€ अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ या मोहवश मृतपà¥à¤°à¤¾à¤¯ परमà¥à¤ªà¤°à¤¾, रीति-रिवाजों से जà¥à¥œà¥‡ रह जाते हैं; ठीक शिव की तरह जो मोहवश सती के शव को ढोते रह जाते हैं। कवि ने इस पà¥à¤°à¤¸à¤‚ग दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सà¥à¤µà¤¾à¤¤à¤‚तà¥à¤°à¥à¤¯à¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ के सामाजिक, राजनैतिक तथा साहितà¥à¤¯à¤¿à¤• कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में नये मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के आगà¥à¤°à¤¹ को उजागर किया है।
How to cite this article:
डॉ० विजय कà¥à¤®à¤¾à¤°. ‘à¤à¤• कंठविषपायी’ में यà¥à¤—-बोध. Int J Appl Res 2018;4(3):591-595.