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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 4, Issue 5, Part C (2018)

मानववादी अवधारणा के संदर्भ में भारतीय चिंतन

मानववादी अवधारणा के संदर्भ में भारतीय चिंतन

Author(s)
डॉ. अंजना रानी
Abstract
आधुनिक युग में मानववादी अवधारणा ने मानव को केंद्र में रखकर इहलोक को ज्यादा न्याययुक्त,सुंदर और सार्थक बनाने का प्रयास किया। यद्यपि इस अवधारणा को पश्चिम की देन माना जाता है लेकिन सच्चाई यह है कि ऋग्वेद के बहुत सारे मंत्र मानव की छोटी-छोटी कामनाओं से जुड़े हुए हैं। ब्राह्मण ग्रंथों में कर्मकांड के नाम पर जिन यज्ञों का प्रचलन था, वे भी मानव की इच्छाओं की तृप्ति के लिए किए जाते थे-चाहे वे स्वर्ग की कामना से हो या पुत्र की कामना से। पश्चिमी जगत में मानववाद पाप और अध:पतन की ईसाई विचारधारा के विरुद्ध प्रतिक्रियास्वरूप अस्तित्व में आया। बुद्धि पर आधारित मानववाद में बाद में संवेदनाओं को भी जोड़ने का प्रयास किया गया। इससे मानवतावाद अस्तित्व में आया। मानववाद जहां मानव को ही साध्य मानता था वहां मानवतावाद ने दृष्टि को विस्तार दिया। मध्यकालीन भारत में साधु-संतों ने ऊंच-नीच, जात-पात के विरुद्ध समाज को जगाया। ऐसे सामाजिक जागरण के वातावरण में भारतीय संस्कृति के आध्यात्मिक मूल्यों ने इंसान में ही भगवान को देखने की दृष्टि उत्पन्न की।
Pages: 193-196  |  384 Views  176 Downloads


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How to cite this article:
डॉ. अंजना रानी. मानववादी अवधारणा के संदर्भ में भारतीय चिंतन. Int J Appl Res 2018;4(5):193-196.
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